Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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२४. स्वतः टूटकर गिरे पत्रों-पुष्पों और फलों का आहार करने वाले। २५. दूसरों के द्वारा फैंके हुये पदार्थों का आहार करने वाले। २६. सूर्य की आतापना लेने वाले। २७. कष्ट सहकर शरीर को पत्थर जैसा कठोर बनाने वाले। २८. पंचाग्नि तापने वाले। २९. गर्म बर्तन पर शरीर को परितप्त करने वाले।
ये तापसों के विविध रूप और साधना के ये विविध प्रकार इस बात के द्योतक हैं कि उस युग में तापसों का ध्यान कायक्लेश और हठयोग की ओर अधिक था। वे सोचते थे – यही मोक्ष का मार्ग है। भगवान् पार्श्वनाथ ने स्पष्ट शब्दों में इस प्रकार की हठ-योग साधना का खण्डन किया था। भगवान् ने कहा - तप के साथ ज्ञान आवश्यक है। अज्ञानियों का तप ताप है। इन तापसों का किन दार्शनिक परम्पराओं से संबंध था, यह अन्वेषणीय है। मैंने औपपातिकसूत्र और ज्ञातासूत्र की प्रस्तावना में तापसों के संबंध में विस्तार से लिखा है, अतः विशेष जिज्ञासु उन प्रस्तावनाओं का अवलोकन करें।
__चतुर्थ अध्ययन में बहुत ही सरस और मनोरंजक कथा है। जब भगवान् महावीर राजगृह में थे तब बहुपुत्रिका नामक देवी समवसरण में आती है और वह अपनी दाहिनी भुजा से १०८ देवकुमारों को और बायीं भुजा से १०८ देवकुमारियों को निकालती है, तथा अन्य अनेक बालक-बालिकाओं को निकालती है और नाटक करती है। गौतम की जिज्ञासा पर भगवान् उसका पूर्व भव सुनाते हैं - भद्र नाम सार्थवाह की पत्नी सुभद्रा थी। वंध्या होने से वह बहुत खिन्न रहती थी और सदा मन में यह चिन्तन करती थी कि वे माताएँ धन्य हैं जो अपने प्यारे पुत्रों पर वात्सल्य बरसाती हैं और सन्तानजन्य अनुपम आनन्द का अनुभव करती हैं। मैं भाग्यहीन हूँ। एक बार वाराणसी में सुव्रता आर्या अपनी शिष्याओं के साथ आई। सन्तानोत्पत्ति के लिये आर्यिकाओं से सुभद्रा ने उपाय पूछा। आर्यिकाओं ने कहा – इस प्रकार का उपाय वगैरह बताना हमारे नियम के प्रतिकूल है। आर्यिकाओं के उपदेश से सुभद्रा श्रमणी बनी और उसका बालकों के प्रति अत्यन्त स्नेह था। वह बालकों का उबटन करती, श्रृंगार करती, भोजन कराती, जो श्रमणमर्यादाओं के प्रतिकूल था। वह सद्गुरुनी की आज्ञा की अवहेलना कर एकाकी रहने लगी। वह बिना आलोचना किये आयु पूर्ण कर सौधर्म कल्प में बहुपुत्रिका देवी हुई। वहाँ से वह सोमा नामक ब्राह्मणी होगी। उसके सोलह वर्ष के वैवाहिक जीवन में बत्तीस सन्तान होगी, जिससे वह बहुत परेशान होगी। वहाँ पर भी श्रमण धर्म को ग्रहण करेगी। मृत्यु के पश्चात् देव होगी और अन्त में मुक्त होगी।
___इस प्रकार इस कथा में कौतूहल की प्रधानता है। सांसारिक मोह-ममता का सफल चित्रण हुआ है। कथा के माध्यम से पुनर्जन्म और कर्मफल के सिद्धान्त को भी प्रतिपादित किया है। स्थानाङ्ग में वर्णन
स्थानांग सूत्र के १०वें स्थान में दीर्घदशा के दश अध्ययन इस प्रकार बताये हैं - १. चन्द्र, २. सूर्य,
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