Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ वर्ग १ : प्रथम अध्ययन ] [५ आर्य सुधर्मा स्वामी का पदार्पण तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स अन्तेवासी अजसहम्मे नामं अणगारे जाईसंपन्ने, जहा केसी (जाव) पञ्चहिं अणगारसएहिं सद्धिं संपरिवुडे, पुव्वाणुपुब्विं चरमाणे, जेणेव रायगिहे नयरे, (जाव) अहापडिरूवं उग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं (तवसा अप्पाणं भावेमाणे) जाव विहरइ। परिसा निग्गया। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया॥ (२) उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के अंतेवासी (शिष्य) जाति (मातृपक्ष), कुल (पितृपक्ष) इत्यादि से सम्पन्न आर्य सुधर्मास्वामी नामक अनगार यावत् पांच सौ अनगारों के साथ पूर्वानुपूर्वी के क्रम से चलते हुये जहां राजगृह नगर था, वहां पधारे यावत् यथा प्रतिरूप (साधुमर्यादानुरूप) अवग्रह (वसति) प्राप्त करके संयम एवं तपश्चर्या से यावत् आत्मा को भावित करते हुये विचरने लगे। उनका शेष वर्णन केशीकुमार के समान जानना चाहिये। उनके दर्शनार्थ परिषद् निकली – जनसमूह नगर से आया। आर्य सुधर्मा ने धर्मोपदेश दिया और परिषद् वापिस लौट गई। . विवेचन – प्रस्तुत पाठ में तीन विषयों का उल्लेख किया गया है - (१) श्रमण भगवान् महावीर के अन्तेवासी आर्य सुधर्मास्वामी का राजगृह नगर में पधारना। उनकी वन्दना करने के लिये तथा धर्मदेशना श्रवण करने के लिये राजगृह नगर के जनसमूह का पहुंचना। (२) आर्य सुधर्मास्वामी द्वारा धर्मदेशना देना और (३) धर्मोपदेश सुनकर जनसमूह का वापिस नगर में लौट जाना। ___ आर्य सुधर्मास्वामी का परिचय देने के लिये केशीकुमार श्रमण का उल्लेख किया गया है। उसका आशय यह है कि भगवान् पार्श्वनाथ की शिष्य परम्परा के केशीकुमार श्रमण का वर्णन राजप्रश्नीयसूत्र में विस्तार से किया गया है। वह समस्त वर्णन एवं उनके महात्म्य को प्रदर्शित करने के लिये प्रयुक्त किये गये विशेषण आर्य सुधर्मास्वामी के लिये भी समझ लेने चाहिये। जम्बू अनगार की जिज्ञासा . ३. तेणं कालेणं तेणं समएणं अजसुहम्मस्स अणगारस्स अन्तवासी जम्बू नामं अणगारे समचउरंससंठाणसंठिए, (जाव) संखित्तविउलतेउलेस्से अजसुहम्मस्स अणगारस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू, (जाव) विहरइ। तए णं से जम्बू जायसढे, (जाव) पज्जुवासमाणे एवं वयासी'उवङ्गाणं भंते समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पन्नत्ते ?'। ___ 'एवं खलु, जम्बू, समणेणं भगवया (जाव) संपत्तेणं एवं उवङ्गाणं पञ्च वग्गा पन्नत्ता। तं जहा - निरयावलियाओ, कप्पवडिंसियाओ, पुफियाओ, पुप्फचूलियाओ, वण्हिदसाओ॥' 'जई णं, भंते! समणेणं जाव संपत्तेण उवङ्गाणं पञ्च वग्गा पन्नत्ता, तं जहा - :१. देखें-राजप्रश्नीय सूत्र पृ. १३६ - आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180