Book Title: Agam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बौद्ध साहित्य में स्वर्ग
बौद्ध परम्परा में भी स्वर्ग के संबंध में वर्णन उपलब्ध है । तथागत बुद्ध से जब कभी कोई जिज्ञासु स्वर्ग के संबंध में जिज्ञासा व्यक्त करता तो तथागत बुद्ध उन जिज्ञासुओं से कहते परोक्ष पदार्थों के संबंध में चिन्ता न करो ।° जो दुःख और दुःख के कारण हैं, उनके निवारण का प्रयत्न करो। जब बौद्धधर्म ने दर्शन का रूप लिया जब स्वर्ग और नरक का चिन्तन उनके लिये आवश्यक हो गया। बौद्ध विज्ञों ने कथाओं के माध्यम से स्वर्ग, नरक और प्रेतयोनि का वर्णन बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है। अभिधम्मत्थसंग्रह में सत्त्वों की दृष्टि से कामावचर, रूपावचर और अरूपावचर इन तीन भूमियों के रूप में विभाजन किया है। तावतिंस, याम, तुसित, निम्मानरति, परिनिम्नितवसवत्ति नाम के देवनिकायों का समावेश है, जिनके नाम इस प्रकार हैं १. ब्रह्मपारिसज्ज, २. ब्रह्मपुरोहित, ३. महाब्रह्म, ४. परित्ताभ, ५. अप्पमाणाभ, ६. आभस्सर, ७. परित्तसुभा, ८. अप्पमाणसुभा, ९. सुभकिण्हा, १०. वेहप्फला, ११. असञसत्ता, १२. अविहा, १३. अतप्पा, १४. सुदस्सा, १५. सुदस्सी, १६. अकनिट्ठा ।
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अरूपावचार भूमि में अधिक अधिक सुख वाली चार भूमि हैं विञाणञ्चायतन, ३. अकिंचंञायतन, ४. नेवसजाना सञ्ञायतन ।
बौद्धों ने देवलोकों के अतिरिक्त प्रेतयोनि भी मानी है। पेतवत्थु ग्रन्थ में उनकी दिलचस्प कथाएँ भी हैं। दीघनिकाय के आटानाटिय सुत्त में लिखा है प्रेतयोनि में जन्म ग्रहण करते हैं । प्रेत पूर्व जन्म के होते हैं जहाँ पर भोग की व्यवस्था होती है। यदि
वे
५०. (क) दीघनिकाय तेविज्जसुत्त ५१. पेतवत्थु १-५
चुगलखोर, खूनी, लुब्ध, तस्कर, दगाबाज आदि व्यक्ति मकान की दीवार के पीछे चौक में मार्ग में आकर खड़े लोग उनका स्मरण करके भी उन्हें भोग नहीं चढ़ाते हैं तो बहुत ही दुःखी होते हैं और जो उन्हें भोग देते हैं, उन्हें वे आशीर्वाद प्रदान करते हैं । प्रेतों के शरीर में सदा जलन होती रहती है। वे सदा भ्रमणशील होते हैं। इनके अतिरिक्त पाली ग्रन्थों में खुप्पिपास, कालङ्कजक उत्पजीवी आदि प्रेत जातियों का भी उल्लेख है ५२
वैदिक साहित्य में स्वर्ग
वेदों में देव देवियों का वर्णन मिलता है। ऋग्वेद आदि के अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि मानव ने प्राकृतिक वैभव को निहारकर उसमें देव और देवियों की कल्पना की। उषा को देवताओं की माता कहा है। उसके बाद उषा को छु की पुत्री भी मानी है। अदिति और दक्ष को भी देवताओं के माता-पिता माना गया है । ५५ तो कहीं पर सोम को अग्नि सूर्य इन्द्र विष्णु द्यु और पृथ्वी का जनक कहा है। देवताओं में परस्पर पिता-पुत्र का संबंध भी बताया गया | देव उत्पन्न होते हैं । देवता अमर भी हैं, अमरता उनका स्वाभाविक
(ख) मज्झिमनिकाय चूलमालुंक्य सुत्त ६३
५२. Buddhist Conception of Spirits, p. 24
५३. देवाना माता
५५. देवानां पितरं
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१. आकासानंचायतन, २.
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- ऋग्वेद १-११३-१९ ५४. ऋग्वेद १-३०-२२ - ऋग्वेद २-२६-३