Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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जीवाभिगमसूत्रे ल्यस्य 'खेत्तच्छेएणं छिज्जमाणस्स तं चेव जाव' क्षेत्रच्छेदेन छिद्यमानस्य तदेव यावत् छिद्यमानस्य द्रव्याणि किं वर्णतः कालादि पश्चवर्णोपेतानि, गन्धतः सुरभिदुरभिगन्धयुक्तानि, रसतस्तिक्तादि पश्चरसोपेतानि, स्पर्शतः कर्कशायष्टस्पर्शयुक्तानि, संस्थानरः परिमण्डलादि पञ्चसंस्थानै परिणतानीति प्रश्नः, भगवानाह'हंता अत्थि' हन्त सन्तीति । 'एवं जाव रिट्ठस्स' एवं यावद्रिष्टस्य रत्नप्रभायां रत्नकाण्डस्य यथा-वर्णादिना परिणामो दर्शितस्तथैव वज्रकाण्डादारभ्य रिष्काण्डपर्यन्त स्थितकाण्डद्रव्याणां वर्णादिना तथा परिणामत्त्वं ज्ञातव्यमिति । 'इमीसे भदन्त ! इस रत्नप्रभा पृथिवी का जो रत्न नाम का काण्ड हैं कि जिसकी मोटाई 'जोयणसहस्स बाहल्लस्स' एक हजार योजन की हैं उसके क्षेत्र च्छेद से प्रतर विभाग के रूप में खण्ड २, करने पर जो इसके आश्रित द्रव्य हैं वे क्या वर्ण की अपेक्षा कालादिवर्ण वाले होते हैं ? गन्ध की अपेक्षा सुरभि गन्ध वाले होते हैं क्या? रस की अपेक्षा-तिक्त आदि रस वाले होते हैं क्या? स्पर्श की अपेक्षा-कर्कशादि स्पर्श वाले होते हैं क्या? और संस्थान की अपेक्षा परिमंडल आदि संस्थान वाले होते हैं क्या? परस्पर संबंध आदि होते हुए परस्पर समुदाय रूप से रहते हैं क्या ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'हंता, अत्थि' हां गौतम उसके आश्रित द्रव्य, रूप, गन्ध, स्पर्श और संस्थान वाले आदि पूर्वोक्तानु. सार होते हैं। 'एवं जाव रिहस्स' रत्नप्रभा के रत्नकाण्ड के द्रव्य के रूप, गंध, रस आदि से युक्त होने के कथन की तरह वज्रकाण्ड रिष्ठकाण्ड तक के द्रव्यों का वर्ण गंध, रस, स्पर्श संस्थान रूप से परिणाम
मा रत्नप्रभा पृथ्वीना २ २ii नामनी छ, न विस्तार 'जोयण सहस्स बाहल्लस्स' मे १२ योनी छे. तना क्षेत्रछेथी प्रतिविमा पाथी ખંડ ખંડ કરવાથી તેના અશ્રિત જે દ્રવ્ય છે તે શું વર્ણથી કાળા વિગેરે વર્ણવાળું હોય છે ? ગધની અપેક્ષાથી સુરભિગંધવાળું કે દુરભિગંધવાળું હોય છે ? રસની અપેક્ષાથી તિત વિગેરે રસવાળું હોય છે? સ્પર્શની અપેક્ષાથી કર્કશ વિગેરે સ્પર્શવાળું હોય છે? અને સંસ્થાનની અપેક્ષાથી પરિમંડલ વિગેરે સંસ્થાનવાળું હોય છે? પરસ્પર મળીને પરસ્પર સમુદાય પણાથી રહે छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु गौतमस्वामीने ४९ छ 'हंता अस्थि' । ગૌતમ! તેના આશ્રયથી રહેલ દ્રવ્ય રૂ૫, ગંધ, રસ, સ્પેશ અને સંસ્થાન विगेरे पूरित ४थन प्रमाणेनु डाय छे. 'एवं जाव रिटुस्स' २त्नप्रभा पृथ्वीना રત્નકાંડના દ્રવ્ય રૂપ, રસ, ગંધ, વિગેરેથી યુકત હોવાના કથન પ્રમાણે વજ કાંડ, રિઝકાંડ' સુધિના દ્રવ્ય વર્ણ, ગંધ, રસ, સ્પર્શ સંસ્થાન પણાથી
જીવાભિગમસૂત્ર