Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir
भवसिद्धिया जीवा जे तिहिं भवग्गहणेहि सिज्झिस्सं(प्र०हिं )ति जाव सव्वदुक्खाणमंत करिस्संति ।३। चत्तारि कसाया पं००कोहक्साए माणकसाए मायाक्साए लोभक्साए, चत्तारि झाणा पं०० -अज्झाणे रुद्दज्झाणे धम्मझाणे सुक्कझाणे, चत्तारि विगहाओ पं०१०-इत्थिकहा भत्तकहा रायकहा देसकहा, चत्तारि सण्णा पं०२० आहारसण्णा भय० मेहुण० परिग्गहसण्णा, चउब्विहे बन्धे पं०२०- पगइबंधे ठिइबंधे अणुभावबंधे पएसबंधे, चउगाउए जोयणे पं०, अणुशहानक्खत्ते चउतारे पं०, पुव्वासादानक्खत्ते चउतारे पं०, उत्तरासाढाणक्खत्ते चउतारे पं०, इमीसे णं रयणप्यभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेझ्याणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पं०, तच्चाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं चत्तारि सागरोवमाइं ठिई पं०, -असुरकुमारणं देवाणं अत्थेगइयाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई ५०, सोहम्मीसाणेसुकण्येसु अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई ६०, सणंकुमारमाहिंदेसुकप्पेसु अत्थेगइयाणं देवाणं चत्वारि सागरोवमाइं ठिई ५०, जे देवा किटुिं सुकिलुि किट्ठियावत्तं किढिप्य किद्विजुत्तं किट्ठिवण्णं किहिलेसं किट्ठिज्झयं किद्विसिंग किद्विसिटुं किटिकूडं किठुत्तरवाडंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसिं णं देवाणं उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई ठिई० पं० -ते णं देवा चउण्हऽद्धमासाणं आणमंति वा० तेसिंणं देवाणं चाहिं वाससहस्सेहिं आहारटे समुपज्जइ, अत्थेगइआ भवसिद्धिया जीवा जे चहिं भवगहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।४। पंच किरिया पं०० काइया अहिगरणिया पाउसिआ पारितावणिआ पाणाइवायकिरिया, पंच महव्व्या पं०० - सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं सव्वाओ ॥ श्रीसमवायाङ्ग सूत्र ॥
| पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113