Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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वहंति सीअं असुरिंदसुरिंदनागिंदा ॥ ९३ ॥ चलचवलकुंडलधरा सच्छंदविउ व्वियाभरणधारी । सुरअसुरवंदिआणं वर्हति सीअं जिणंदाणं ॥ ९४ ॥ पुरओ वहंति देवा नागा पुण दाहिणम्मि पासम्मि । पच्चच्छिमेण असुरा गरुला पुण उत्तरे पासे ॥ ९५ ॥ उसभो अ विणीयाए बारवईए अरिट्ठवरणेमी । अवसेसा तित्थयरा निक्खता जम्मभूमीसु ॥ ९६ ॥ सव्वेऽवि एगदूसेण णिग्गया जिणवरा चउवीसीण य णाम अण्णलिंगे ण य गिहिलिंगे कुलिंगे य ॥ ९७ ॥ एक्को भगवं वीरो पासो मल्ली य तिहिं तिहिं सएहिं । भगवंपि वासुपूज्जो छहिं | पुरिससएहिं निक्खतो ॥ ९८ ॥ उग्गाणं भोगाणं राइण्णाणं च खत्तियाणं च । चउहिं सहस्सेहिं उसभो सेसा उ सहस्सपरिवारा ॥ ९९॥ सुमइत्थ णिच्चभत्तेण णिग्गओ वासुपूज्ज चोत्थेणं । पासो मल्ली य अटुमेणं सेसा उछट्टेणं ॥ १०० ॥ एएसिं णं चउवीसाए तित्थगराण चउव्वीसं पढमभिक्खादायारो होत्या, तं० - सिजंस बंभदत्ते सुरिंददत्ते य इंददत्ते य । पउमे य सोमदेवे महिंद तह सोमदत्ते य ॥ १०१ ॥ पुस्से पुण्व्वसू पुण्णणंद सुगंदे जये य विजये य । तत्तो य धम्मसीहे सुमित्त तह वग्गसीहे अ ॥ १०२ ॥ अपराजिय विस्ससेणे वीसइमे होइ उसभसेणे य। दिण्णे वरदत्ते धण बहुले य आणुपुवीए ॥ १०३ ॥ एए विसुद्धलेसा जिणवर भत्तीइ, पंजलिउडा उ । तं कालं तं समयं पडिला भेई जिणवरिंदं ॥ १०४ ॥ संवच्छरेण भिक्खा लद्धा उसभेण लोयणाहेण । सेसेहिं बीयदिवसे लद्धाओ पढमभिक्खाओ ॥ १०५ ॥ उसभस्स पढमभिक्खा खोयरसो आसि लोगणाहस्स । सेसाणं परमण्णं अमियर सरसोवमं आसि ॥ १०६ ॥ सव्वेसिंपि |जिणाणं जहियं लद्धाउ पढमभिक्खाउ । तहियं वसुधाराओ सरीरमेत्ताओ वुट्टाओ ॥ १०७ ॥ एएसिं चउवीसाए तित्थगराणं चउवीसं
॥ श्री समवायाङ्ग सूत्रं ॥
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पू. सागरजी म. संशोधित
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