Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir || विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसिंणं देवाणं उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई ठिई पं०, ते णं देवा सत्तण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा० तेसिं|| णं देवाणं सत्तहिं वाससहस्सेहिं आहाटे समुष्पज्जइ, संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे णं सत्तहिं भवग्गहणेहिं सिझिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति १७अ मयद्वाणा पं० ० - जातिभए कुलमए बलमए रूवमए तवमए सुयमए लाभमए इस्सरियमए, अट्ठ पश्यणमायाओ पं०० ईरियासमिई भासासमिई एसणासमिई आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिई उच्चारपासवणखेलजल्लसिंघाणपारिद्वावणियासमिई मणगुत्ती वयगुत्ती कायगुत्ती, वाणमंतराणं देवाणं चेइयाक्खा अजोयणाई उद्धंउच्चत्तेणं पं०, जंबूणंसुदंसा अट्ठ जोयणाई उद्धंउच्चत्तेणं पं०, कूडसामली णं गरुलावासे अट्ठ जोयणाई उद्धंउच्चत्तेणं पं०, जंबुद्दीवस्सणं जगई अटु जोयणाई उद्धंउच्चत्तेणं पं०, अट्ठसामइए केवलिसमुग्धाए ५००० -पढमे समए दंडं करेइ बीए समए कवाडं करेइ तइए समए मथं करेइ चउत्थे समए मंथंतराइं पूरेइ पंचमे सभए मथुतराई पडिसाहरइ छठे समए मंथं पडिसाहरइ सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ अट्ठमे समए दंड पडिसाहरइ ततो पच्छा सरीरत्थे भवइ, पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणिअस्स अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा होत्था, तं० -सुभे य सुभधोसे य, वसिढे बंभयारि योसोमे सिरिधरे चेव, वीरभद्दे जसे इय ॥१॥अट्ठ नक्खत्ता चंदेणं सद्धिं पमहं जोगं जोएंति, तं० -कत्तिया रोहिणी पुणव्वसू महा चित्ता विसाहा अणुराहा जेट्ठा, इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठ पलिओवमाई ठिई पं०, चउत्थीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठ सागरोवमाई ठिई पं०, असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठ पलिओवमाई ठिई पं०, | ॥ श्रीसमवायाङ्ग सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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