Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 86
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समणगणपवरगंधहत्थीणं थिरजसाणं परिसह सेण्णरिउबलपमद्दणाणं दव (तव पा० ) दित्तचरित्तणाणसम्मत्तसारविहप्पगार- | वित्थरपसत्थगुणसंजुयाणं (गुणज्झयाणं पा० ) अणगारमहरिसीणं अणगारगुणाण वण्णओ उत्तमवरतवविसिट्टणाणजोगजुत्ताणं जह य जगहियं भगवओ जारिसा इड्ढिविसेसा देवासुरमाणु साणं परिसाणं पाउब्भावा य जिणसमीवं जह य उवासंति जिणवरं जह य परिकर्हति धम्मं लोगगुरू अमरनरसुरगणाणं सोऊण य तस्स भासियं अवसेसकम्मविसयविरत्ता नरा जहा अब्भुवेति धम्ममुरालं संजमं तवं चावि बहुविहप्पगारं जह बहूणि वासाणि अणुचरिता आराहियनाणदंसणचरित्तजोगा जिणवयणमणुगयमहियं ( वयणाणुगइस पा० ) भासित्ता जिणवराण हिययेणमणुण्णेत्ता जे य जहिं जत्तियाणि भत्ताणि छेअइत्ता लद्धूण य समाहिमुत्तमज्झाणजोगजुत्ता उववत्रा मुणिवरोत्तमा जह अणुत्तरेसु पावंति जह अणुत्तरं तत्थ विसयसोक्खं तओ य चुआ कमेण काहिंति संजया जहा य अंतकिरियं एए अन्ने य एवमाइअत्था वित्थरेण०, अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ संग्रहणीओ, से णं अंगट्टयाए नवमे अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा तिन्नि वग्गा दस उद्देसणकाला दस समुद्देसणकाला संखेज्जाई पयस्यसहस्साइं । पयग्गेणं पं०, संखेज्जाणि अक्खराणि जाव ऐवं चरणकरणपरूवणया आघविज्जंति०, सेत्तं अणुत्तरोववाइदसाओ । १४४ । से किं तं पण्हावागरणाणि ?, पण्हावागरणेसु अट्ठत्तरं पसिणसयं अट्टुत्तरं अपसिणसयं अट्टुत्तरं पसिणापसिणसयं विज्जाइसया नागसुवन्नेहिं सद्धिं दिव्वा संवाया आघविज्जंति, पण्हावागरणदसासु णं ससमय पर समयपण्णवयपत्ते अबुद्धविविहत्थभासाभासियाणं पू. सागरजी म. संशोधित ॥ श्रीसमवायाङ्ग सूत्रं ॥ ७५ For Private And Personal Use Only

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