Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 88
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भत्तपच्चक्खाणाई पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपच्चायाया पुणबोहिलाहो अंतकिरियाओय आधविनंति, दुहविवागेसुणं|| पाणाइवायअलियवयणचोरिककरणपरदारमेहुणससंगयाए महतिव्वकसायइंदियप्पभायपावपओयअसुहझवसाणसंचियाणं कम्माणं पावगाणं पावअणुभागफलविवागा णिस्यगतितिरिक्खजोणिबहुविहवसणसयपरंपरापबद्धाणं मणुयत्तेऽवि आगयाणं जहा पावकम्मसेसेण पावगा होन्ति फलविवागा वहवसणविणासनासाकन्नुटुंगुढ़करचरणनहच्छेयणजिब्भच्छेअणअंजणकडग्गिदाहगयचलणमलणफालणउल्लंबणसूललयालउडलट्ठिभंजणतउसीसगतत्ततेल्लकलकलअहिसिंचणकुंभिपागकंप थिरबंधणवेहवझकत्तणपतिभयंकरकरपल्लीवणादिदारुणाणि दुक्खाणि अणोवमाणि बहुविविहपरंपराणुबद्धाण मुच्चंति पावकम्भवल्लीए, अवेयइत्ता हु गस्थि मोक्खो तवेण धिइधणियबद्धकच्छेण सोहणं तस्स वावि हुजा, एत्तोय सुहविवागेसु णं सीलसंजमणियमगुणतवोवहाणेसु साहूसु सुविहिएसु अणुकंपासयपओगतिकालमइविसुद्धभत्तपाणाई प्ययमणसा हियसुहनीसेसतिव्वपरिणामनिच्छियमई पयच्छिऊणं पयोगसुद्धाई जह य निव्वत्तेति उ बोहिलाभं जह य परित्तीकरेंति नरनश्यतिरियसुरगमणविपुलपरियट्ट अतिभयविसायसोगमिच्छत्तसेलसंकडं अनाणतमंधकारचिक्खिल्लसुदुत्तारं जमरणजोणिसंखुभियचक्कवालं सोलसकसायसावयपयंडचंडं अणाइअं अणवदग्गं संसारसागरमिणंजह यणिबंधति आउगंसुरगणेसुजह य अणुभवंति सुरगणविमाणसोक्खाणि अणोवमाणिततोय कालंतरे चुआणं इहेव नरलोगभागयाणंआउवपुपुण्णरूवजातिकुलजम्मआरोग्गबुद्धिमेहाविसेसा मित्तजणसयणधणधण्णविभवसमिद्धसारसमुदयविसेसा ॥ ॥ श्रीसमवायाङ्ग सूत्रं ॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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