Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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णितिया सासया अक्खया अव्वया अवट्ठिया णिच्चा एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगेण कयाइ आसिण कयाइ णत्थिणकयाइण|| भविस्स भविंच भवति य भविस्सइ य धुवे जाव अवद्विए णिच्चे, एत्थ्ण दुवालसंगे गणिपिडगे अणंता भावा अणंता अभाव अणंता हेऊ अणंता अहेऊ अणंता कारणा अणंता अकारणा अणंता जीवा अणंता अजीवा अणंता भवसिद्धिया अणंता अभवसिद्धिया अणंता सिद्धा अणंता असिद्धा आधविनंति पण्ण० परूविजंति दंसिजति निदंसिर्जति उवदंसिजंति, एवं दुवालसंगं गणिपिडगं इति ||१४८ दुवे रासी पं०० -जीवरासी अजीवरासीय, अजीवासी दुविहा पं०० -रूवीअजीवरासी २ अरूवीअजीवासी य, से किं| तंअरूवीअजीवरासी?, अरूविअजीवासी दसविहा पं०० - धम्मस्थिकाए जाव अद्धासमए,रूवीअजीवासी अणेगविहा पं० जाव
तं अणत्तरोववाडआ?,अणत्तरोववाइआ पंचविहा पंन्तं०-विजयवेजयंतजयंत-अपराजितसव्वद्रसिद्धिआ,सेत्तं अणुत्तरोववाइआ, सेत्तं पंचिंदियसंसारसमावण्णजीवरासी, दुविह। णेरइया पं०२० -प्रज्जत्ता य अपजत्ता य, एवं दंडओ भाणियव्वो जाव वेमाणियत्ति, इमीसे ण रयणप्यभाए पुढवीए केवइयं खेत्तं ओगाहेत्ता केवइया णिरयावासा पं०?, गोयमा ! इमीसे णं रयणप्यभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरि एगंजोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेहाचेगंजोयणसहस्संवजेत्तामझे अट्ठसत्तरि जोयणसयसहस्से |एत्थ णं रयणप्यभाए पुढवीए मेरइयाणं तीसं णिस्यावाससयसहस्सा भवंतीतिमक्खाया, ते णं णिरयावासा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा जाव असुभा णिश्या असुभाओ णिरएसु वेयणाओ, एवं सत्तविभाणियवाओ जं जासु जुजइ आसीयं बत्तीसं अट्ठावीसं तहेव वीसं ॥ श्रीसमवायाङ्ग सूत्रं ॥
| पू. सागरजी म. संशोधित
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