Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 92
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir |जणं आइल्लाणं चउण्हं पुव्वाणं चूलियाओ, सेसाई पुव्वाइं अचूलियाई, सेत्तं चूलियाओ, दिद्विवायस्स णं परित्ता वायणा संखेजा अणुओगदास संखेजाओ पडिवत्तीओ संखेजाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ संगहणीओ, से णं अंगट्टयाए बारसमे अंगे एगे सुयखंधे चउदस पुव्वाइं संखेजा वत्थू संखेज्जा चूलवत्थू संखेज्जा पाहुडा संखेज्जा पाहुडपाहुडा संखेज्जाओ पाहुडियाओ संखेज्जाओ पाहुडपाहुडियाओ संखेजाणि पयसयसहस्साणि पयग्गेणं पं०, संखेज्जा अक्खरा अनंता गया अणंता पज्जवा परित्ता तसा अनंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आघविज्जंति पण्णविनंति परुविज्जंति दंसिजंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जंति, एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणया आघविज्जंति०, सेत्तं दिट्टिवाए, सेतं दुवालसंगे गणिपिडगे ।१४७। इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीतकाले अणंता जीवा आणाए विराहित्ता चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियट्टिसु इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं पडुप्पण्णे काले परित्ता जीवा आणाए विराहित्ता चाउअंतसंसार कंतारं अणुपरियद्वंति इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अणागए काले अनंता जीवा भाणाए विराहित्ता चाअंतसंसार कंतारं अणुपरियट्टिस्संति, इच्चेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीतकाले अनंता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरंतसंसार कंतारं वीईवइंस एवं पडुप्पण्णेऽवि एवं अणागएऽवि, दुवालसंगे णं गणिपिडगे ण कयावि णत्थि ण कयाइ णासी ण कयाइ ण भविस्सइ भुविं च भवति य भविस्सति य धुवे णितिए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे, से जहाणामए पंच अत्थिकाया ण कयाइ ण आसि ण कयाइ णत्थि ण कयाइ ण भविस्सति भुविं च भवति य भविस्सति य धुवा ॥ श्रीसमवायाङ्ग सूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोषित ८१ For Private And Personal Use Only

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