Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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पा० )दसणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुपजिजा अहातच्चं सुमिणं पासित्तए, सण्णिनाणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुप्पजिजा पुत्वभवे सुमरित्तए, देवदंसणे वा से असमुष्पत्रपुव्वे समुपजिजा दिव्वं देविद्धिं दिव्वं देवजुइं दिव्वं देवाणुभावं पासित्तए, ओहिनाणे वा से असमुप्पण्णयुव्वे समुप्पजिजा ओहिणा लोगं जोणित्तए, ओहिदसणे वा से असमुपण्णपुव्वे समुष्पजिजा ओहिणा लोग पासित्तए, मणपज्जवनाणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुपजिजा जाव मणोगए भावे जाणित्तए, केवलनाणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुपजिजा केवलं लोग जाणित्तए, केवलदसणे वा से असमुप्पण्णपुव्वे समुष्पजिजा केवलं लोयं पासित्तए, केवलिमरणं वा मरिजा सव्वदुक्खप्पहीणाए, मंदरे णं पव्वए मूले दस जोयणसहस्साई विक्खंभेणं पं०, अरिहा णं अरिहनेभी दसधणई उद्धंउच्चत्तेणं होत्था, कण्हे णं वासुदेवे दस धणूई उड्ढउच्चत्तेणं होत्था, रामेणं बलदेवे दस थणूई उद्धंउच्चत्तेणं होत्था, दस नक्खत्ता नाणवुद्धिकरा पं०२० - मिगसिर अहा पुस्सो तिण्णि अपुव्वा य मूलमस्सेसा । हत्थो चित्ता यतहा दस वुद्धिकराई नाणस्स ॥३॥अकम्मभूमियाणं मणुआणं दसविहा रुक्खा उवभोगत्ताए उत्थिया ६०० -भत्तंगया य भिंगा तुडिअंगा दीव जोइ चित्तंगा । चित्तरसा मणिअंगा गेहागारा अनिगिणा य॥४॥इमीसे णं रयप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं जहण्णेणं दस वाससहस्साई ठिई ५०, इमीसे गं रयणप्यभाए पुढवीए अत्थेगइआणं नेरइयाणं दस पलिओवमाई लिई पं०, चउत्थीए पुढवीए दस निरयावाससयसहस्साई पं० च्उत्थीए पुढवीए उक्कोसेणं दस सागरोवमाई ठिई पं०, पंचमीए पुढवीए जहण्णेण दस सागरोवमाई ठिई ५० असुरकुमाराणं देवाणं जहण्णेणं ॥ श्रीसमवायाङ्ग सूत्र ॥
| पू. सागरजी म. संशोधित
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