Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 34
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सत्तरस सागरोवमाई ठिई पं०, ते णं देवा सत्तरसहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा ४, तेसिं णं देवाणं सत्तरसहिं वाससहस्सेहिं आहाटे|| समुष्पजइ, संतेगइया भवसिद्धिआ जीवा जे सत्तरसहिं भवग्गहणेहिं सिन्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति ।१७। अठारसविहे बंभे पं०० -ओरालिए कामभोगे णेव सयं मणेणं सेवइ नोऽवि अण्णं मणेणं सेवावेइ मणेणं सेवंतंपि अण्णं न समणुजाणइ आरोलिए कामभोगेणेव सयं वायाए सेवइ नोऽवि अण्णं वायाए सेवावेइ वायाए सेवंतंपि अण्णं न समणुजाणइ ओरालिए कामभोगे णेव सयं कायेणं सेवइ णोऽवि यऽण्णं कारणं सेवावेइ कारणं सेवंतपि अण्णं न समणुजाणाइ, दिव्वे कामभोगे णेव सयं मणेणं सेवइ तह चेव नव आलावगा, अरहतो णं अरिष्टनेमिस्स अट्ठारस समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपया होत्था, समणेणं भगवया महावीरेणं सभणाणं णिगंथाणं सखड्डयविअत्ताणं अद्वारस ठाणा पं०० -व्यछकं कायछक्कं अक्प्यो गिहिभायणी पलियंक निसिजा य, सिणाणं सोभवजणं ॥ १६ ॥आयारस्स णं भगवतो सचूलिआगस्स अट्ठारस पयसहस्साई पयग्गेणं पं०, बंभीए णं लिवीए अट्ठारसविहे लेखविहाणे पं०२० -बंभी जवणालिया दोसाऊरिआ खरोहिआखरसाविआ पहाराइया उच्चतरिआ अक्खरपुठिया भोगवयता वेणतिया णिण्हइया अंकलिवि (गणिअलिवीx) गंधव्वलिवी भूयलिवि आदंसलिवी माहेसरीलिवी दामिलीलिवी बोलिदिलिवी, अस्थिनस्थिप्पवायस्सणं पुव्वस्स अट्ठारस वत्थू पं०, धूमप्यभाए णं पुढवीए अट्ठारसुत्तरं जोयणसयसहस्सं बाहल्लेणं पं०, पोसासाढेसुणं मासेसु सइ उक्कोसेणं अतुरसमुहुत्ते दिवसे भवइ सइ उक्कोसेणं अट्ठारसमुहुत्ता राती भवइ, इभीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए श्रीसमवायाङ्ग सूत्र ॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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