Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 81
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संखेज्जा अक्खरा अणंता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासया कडा णिबद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा आधविनंति|| पण्णविनंति परूविजति निदंसिजति उवदंसिजति,से एवं आया एवंणाया एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणया आधविनंति०, सेत्तं ठाणे।१३८ ।से किं तं समवाए ? समवाएणं ससमया सूइज्जति परसमया सूइज्जति ससमयपरसमया सूइज्जति जाव लोगालोगा सूइजति, समवाएणं एगाइयाणं एगहाणं एगुत्तरियपरिवुड्ढीए दुवालसंगस्स य गणिपिडगस्स पल्लवग्गे समणुगाइजइ, ठाणगसयस्स बारसविहवित्थरस्स सुयणाणस जगजीवहियस्स भगवओ समासेणं समोयारे आहिज्जति, तत्थ यणाणाविहप्यगारा जीवाजीवा या वणिया वित्थरेण अवरेऽवि अ बहुविहा विसेसा नगतिरियमणुअसुरगणाणं आहारुस्सासलेसाआवाससंखआयप्पमाणउववायचवणउगहणोवहिवेयणविहाणउवओगजोगइंदियकमाया विविहाय जीवजोणी विक्खंभुस्सेहपरिश्यप्यमाणं विहिविसेसा य मंदरादीणं| महीधराणं कुलगरतित्थगरगणहराणं सम्मत्तभरहाहिवाणं चक्कीणं चेव चक्कहरहलहराण य वासा य निगमा य समाए एए अण्णे य एवमाई एत्थ वित्थरेणं अत्था समाहि( मवा )जति, समवायस्सणं परित्ता वायणा जाव से णं अङ्गट्टयाए चउत्थे अंगे एगे अज्झयणे एगे सुयक्खंधे एगे उद्देसणकाले० एगे च्याले पदसयसहस्से पदग्गेणं पं०, संखेजाणि अक्खराणि जाव चरणकरणपरूवणया आघविनंति०, सेत्तं समवाए ।१३९ से किं तं वियाहे ?, वियाहेणं ससमया विआहिजति परसमया विआहिज्जति ससमयपरसमया विआहिजति जीवा विआहिजति अजीवा विआहिजति जीवाजीवा विआहिजति लोगे विआहिज्जइ अलोए वियाहिज्जइ लोगालोगे ॥श्रीसमवायाङ्ग सूत्र ॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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