Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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| अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठारस पलियोवमाई ठिई पं०, छट्टीए पुढवीए अत्थेग० णेरइयाणं अट्ठारससाग० पं०, असुरकुमाराणं देवाणं | अत्थेगइयाणं अट्ठारस पलिओवमाई ठिई पं०, सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइ आणं देवाणं अट्ठारस पनिओवमाई ठिई पं०, सहस्सारे कप्पे देवाणं उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाई ठिई पं०, आणए कप्पे देवाणं अत्थेगइयाणं जहण्णेणं अट्ठारस सागरोवमाई ठिई पं०, जे देवा कालं सुकालं महाकालं अंजणं रिट्ठ सालं समाणं दुमं महादुमं विसालं सुसालं परमं परमगुम्मं कुमुदं कुमुदगुम्भं नलिणं नलिणगुम्मं पुंडरीअं पुंडरीयगुस्सं सहस्सारवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसिं णं देवाणं अट्ठारस सागरोवमाई ठिई पं०, ते णं | देवाणं अट्ठारसेहिं अद्धमासेहिं आणमंति वा ४, तेसिं णं देवाणं अट्ठारसवाससहस्सेहिं आहारट्टे समुप्पज्जइ, संतेगइआ भवसिद्धिया जीवा जे अट्ठारसहिं भवग्गहणेहिं सिज्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सिंति । १८ । एगूणवीसं णायज्झयणा पं० तं० उक्खित्तणाए संधाडे, अंडे कुम्मे अ सेलए । तुंबे अ रोहिणी मल्ली, मागंदी चंदिमाति अ ॥ १७ ॥ दावद्दवे उदगणाए, मंडुक्के तेत्तली इओ नंदिफले अवरकंका, आइण्णे सुंसमा इअ ॥ १८ ॥ अवरे अ पोण्डरीए, गाए एगूणवीसमे । जंबुद्दीवे णं दीवे सूरिआ उक्कोसेणं एगूणवीस जोयणसयाई उड्ढमहो त्वयंति, सुक्केणं महग्गृहे अवरेणं उदिए समाणे एगूणवीसं नक्खत्ताइं समे चारं चरिता अवरेणं अत्यमणं उवागच्छइ, जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स कलाओ एगूणवीसं छेअणाओ पं०, एगूणवीसं तित्थयरा अगारवासमझे (प्र०ज्झा) वसित्ता मुंडे भवित्ता णं आगाराओ अणगारिअं पव्वइआ, इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइआणं एगूणवीसं पलिओवमाई ठिई
॥ श्रीसमवायाङ्ग सूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
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