Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra __www. sobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सव्वदुक्खाणमंतं करिस्संति । २९ । तीसं मोहणीयठाणा पं०० -जे यावि तसे पाणे, वारिमझे विगाहिआ। उदएणाकम्म मारेई, महामोहं पकुव्वद ॥ २९ ॥ सीसावेढेण जे केई, आवेढेइ अभिक्खणं । तिव्वासुभसमायारे, महामोहं पकुव्वद ॥ २२ ॥ पाणिणा संपिहिताणं, सोयमावरिय पाणिणं अंतोनदंतं मारेई,महामोहं पकुव्वद ॥ २३ ॥ जायतेयं समारब्म, बहुं ओरंभिया जणं अंतोधूमेण मारेई (जा), महामोहं पकुव्वद ॥ २४ ॥ सिस्संमिजे पहणइ, उत्तमंगम्मि चेयसाविभज मत्थयं फाले, महामोहं पकुव्वद ॥२५॥ पुणो पुणो पणिधिए, हरित्ता उवहसे जणं । फलेणं अदुवा दण्डेणं, महामोहं पकुव्वइ ॥२६॥ गूढायारी निगहिज्जा, मायं मायाए छायए। असच्चवाई णिहाई, महामोहं पकुव्वइ ॥२७॥धंसेइ जो अभूएणं, अकम्म अत्तकम्भुणा। अदुवा तुमकासित्ति, महामोहं पकुव्वइ ॥ २८ ॥जाणमाणो परिसओ, सच्चामोसाणि भासइ । अक्खीणझंझे पुरिसे, महामोहं पकुव्वद ॥ २९ ॥ अणायगस्स नयवं, दारे तस्सेव धंसिया । विउलं विक्षोभइत्ताणं, किच्चाणं पडिबाहिरं ॥३०॥ उवासंतपि अंपित्ता, पडिलोमाहिं वियारेई, महामोहं पकुव्वइ ॥ ३९ ॥ अकुमारभूए जे केई, कुमारभूएत्तिऽहंवए । इत्थीहिं गिद्धे वसए, महामोहं पकुव्वइ ॥ ३२ ॥ अबंभयारी जे केई, बंभयारीतिऽहं वए । गद्दहेब्व गवां मझे, विस्सरं नयई नदं ॥ ३३ ॥ अपणो अहिए बाले, मायामोसं बहुं भसे । इत्थीविसयगेहीए, महामोहं पकुव्वइ ॥ ३४॥ जनिस्सिए उव्वहइ, जससाऽहिगमेण वा । तस्स लुब्भइ वित्तम्मि, महामोहं पकुव्वइ ॥३५॥ईसरेणं अदुवा गामेणं, अणिसरे ईसरीकए। तस्स संपयहीणस्स, सिरी अतुलभागया ॥३६॥ईसादोसेण आविद्वे, कलुसाऽऽवि॥श्रीसमवायाङ्ग सूत्र ॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113