Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kalassagarsuri Gyanmandir
चरमंताओ पच्चच्छिमिल्ले चरमते एस नवनउई जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पं०, एवं दक्खिणिलाओ चरमंताओ उत्तरिल्ले चरमते एस|| णं णवणउई जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पं०, उत्तरे पढमे सूरियमंडले नवनउई जोयणसहस्साइं साइरेगाइ आयामविक्खंभेणं पं०, दोच्चे सूरियमंडले नवनउई जोयणसहस्साइं साहियाई आयामविक्खंभेणं पं०, तइए सूरियमंडले नवनउई जोयणसहस्साइं साहियाई आयामविक्खंभेणं पं०, इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अंजणस्स कंडस्स हेछिल्लाओ चरमंताओ वाणमंतरभोमेज्जविहाराणं उरिमंते एसणं नवनउई जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पं० १९९ । दसदसमिया णं भिक्खुपडिमा एगेणं राइंदियसतेणं अद्धछठेहिं भिक्खासतेहिं| अहासुत्तं जाव आराहिया यावि भवइ, सयभिसया नक्खत्ते एकसयतारे पं०, सुविही पुष्पदंते णं अहा एगंधणूसयं उड्ढंउच्चत्तेणं होत्था, पासे णं अहा पुरिसादाणीए एवं वाससयं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे जावप्पहीणे, एवं थेरेऽवि अजसुहम्मे, सव्वेऽविणं दीहवेयड्ढपव्वया एगमेगं गाउयसयं उड्ढंउच्चत्तेणं पं०, सव्वेऽविणंचुल्लहिमवंतसिहरीवासहरपव्वया एगमेगं जोयणसयं उड्ढउच्चत्तेणं |पं० एगभेगं गाउयसयं उव्वेहेणं पं०, सव्वेऽविणं कंचणगपव्वया एगमेगं जोयणसयं उड्ढउच्चत्तेणं पं० एगमेगं गाउयसयं उव्वेहेणं पं०, एगमेगं जोयणसयं भूले विक्खंभेणं पं०।१०० । चंदपभ्भे णं अरहा दिवड्ढे घणुसयं उड्ढंउच्चत्तेणं होत्था, आरणे कप्पे दिवड्ढं विभाणावाससयं पं०, एवं अच्चुएऽवि । १०१ । सुपासे णं अरहर दो घणुसया उड्ढउच्चत्तेणं होत्था, सव्वेऽविणं महाहिमवंतरुप्पीवासहरपव्व्या दो दो जोयणसयाई उड्ढंउच्चत्तेणं पं० दो दो गाउयसयाइं उव्वेहेणं पं०, जंबुद्दीवे णं दीवे दो || ॥श्रीसमवायाङ्ग सूत्रं ॥
पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113