Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir णोइंदियअत्थावग्गहे,सोइंदियवंजणोग्गहे पाणिंदियवंजणोग्गहे जिभिदियवंजणोग्गहे फासिंदियवंजणोग्गहे सोतिंदियईहा चक्खिदियईहा/ घाणिदियईहा जिभिदियईहा फासिंदियईहाणोइंदियईहासोतिंदियावाए चक्खिदियावाए धाणिदियावाए जिभिदियावाए फासिंदियावाए णोइंदियावाए सोइंदिअधारणा चक्खिदियधारणा धाणिदियधारणा जिभिदियधारणा फासिंदियधारणा णोइंदियधारणा, ईसाणे णं कप्पे अट्ठावीसं विमाणावाससयसहस्सा पं०, जीवेणं देवगइम्मि बंधमाणे नामस्स, कम्मस्स अट्ठावीसं उत्तरपगडीओ णिबंधति, तं०देवगतिनामं पंचिंदियजातिनाम वेव्वियसरीरनाम तेयगसरीरनामं कम्मणसरीरनाम समचरंससंठाणणामं वेउब्वियसरीरंगोवंगणाम वण्णणामं गंधणामं रसणामं फासनामं देवाणुपुविणामं अगुरुलहनामं उवधायनाम पराधायनामं उस्सासनामं पसत्थविहायोगइणाम तसनामं बायरणामं पज्जतनाम पत्तेयसरीरनामं थिराथिराणं सुभासुभाणं आएजाणाएजाणं दोण्हं अण्णयरं एगं नाम णिबंध जसोकित्तिनामं निम्भाणनाम, एवं चेव नेरइआवि,णाणत्तं अप्पसत्थविहायोगइणामं हुंडगसंठाणणामं अथिरणामं दुब्भगणामं असुभनाम दुस्सरनाम अणादिजणामं अजसोकित्तीणामं निम्भाणनाम, इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं अट्ठावीसंपलिओवमाई ठिई पं०, अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरझ्याणं अट्ठावीसं सागरोवमाई ठिई पं०, असुरकुमाराणं देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठावीस पलिओवभाई ठिई पं०, सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवाणं अत्थेगइयाणं अट्ठावीसं पलिओवमाइं ठिई पं०, उवरिमहेट्ठिभगेवेज्जयाणं देवाणं जहण्णेणं अहावीसं सागरोवमाई ठिई पं०,जे देवा मज्झिमउवरिमगेवेनएस विमाणेसु देवत्ताए उववण्णा तेसिंणं देवाणं उक्कोसेणं ॥ श्रीसमवायाङ्ग सूत्र ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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