Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
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तिगुत्तं ( सिद्धं पा० ) च, दुपवेसं एगनिक्खमणं ॥७॥ विजया णं रायहाणी दुवालस जोयणसयसहस्साई अयामविक्खंभेणं पं०,|| | रामेणं बलदेवे दुवालस वाससयाई सव्वाउयं पालिता देवत्तं गए, मंदरस्सणं पव्वयस्स चूलिआ मूले दुवालस जोयणाई विक्खंभेणं पं०, जंबूदीवस्स णं दीवस्स वेइआ मूले दुवालस जोयणाई विखंभेणं पं०, सव्वजहण्णि राई दुवालसमुहुत्तिा पं०, एवं दिवसोऽविनायव्यो, सव्वट्ठसिद्धस्सणं महाविमाणस्स उवरिल्लाओथूभिअग्गाओ दुवालस जोयणाई उद्धं उप्पइआईसिपब्भारनामपुढवीं पं०, ईसिपब्भाराए णं पुढवीए दुवालस नामधेजा पं०२० -ईसिति वा ईसिपब्भाराति वा तणूइ वा तणूयतरित्ति वा सिद्धित्ति वा सिद्धालएत्ति वा मुत्तीति वा मुत्तालएति वा बभेत्ति वा बंभवडिसएत्ति वा लोकपडिपूरणेति वा लोगग्गचूलिआइ वा, इभीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइआणं नेरइयाणंबारस पलिओवभाई ठिई ५०, पंचभीए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं बारससागरोवमाई ठिई पं०, असुरकुमारणं देवाणं अत्थेगइयाणं बारस पलिओवमाई लिई पं०, सोहमीसाणेसु कम्येसु अत्थेगइयाणं देवाणं बारस पलिओवमाई ठिई पं०, लंतए कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं बारस सागरोवमाइं ठिई ५०, जे देवा महिंदं महिंदज्झयं कंबुं कंबुग्गीवं पुंखं सुपुंखं महापुंखं पुंडं सुपुंडं महापुंडं नरिंदं नरिंदकंतं नरिंदुत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसिं णं देवाणं उक्कोसेणं बारस सागरोवमाई ठिई पं०, ते णं देवा बारसण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा ४, तेसिं णं देवाणं बारसहिं वाससहस्सेहिं आहारटे समुपजइ, संतेगइआ भवसिद्धिआ जीवा जे बारसहिं भवगहणेहिं सिन्झिस्संति जाव सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति । १२ तेरस किरियाठाणा || ॥ श्रीसमवायाङ्ग सूत्रं ॥
| पू. सागरजी म. संशोधित
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