Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
||सोहम्भीसाणेसु कथ्येसु अत्थेगइयाणं देवाणं अट्ठ पलिओवमाई ठिई ५०, बंभलोए कप्ये अत्थेगइयाणं देवाणं अट्ठ सागरोवमाई ठिई|| पं०, जे देवा अच्चि अच्चिमालिं वइरोयणं पभंकर चंदाभं सूराभं सुपट्टा, अग्गिच्चाभं रिद्वाभं अरुणाभं अरुणुत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसिंणं देवाणं उक्कोसेणं अट्ठ सागरोवमाई ठिई ६०, ते णं देवा अट्ठण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा ४ तेसिंणं देवाणं अट्ठहिं वाससहस्सेहिं आहारटे समुपज्जइ, संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे अट्ठहिं भवागहणेहिं सिन्झिस्संति जाव अंतं करिस्संति । नव बंभचेरगुत्तीओ पं०२० नो इत्थीपसुपंडगसंसत्ताणि सिज्जासणाणि सेवित्ता भवइ, नो इत्थीणं कहं कहित्ता भवइ, नो इत्थीणं ठाणाई सेवित्ता भवइ, नो इत्थीणं इंदियाणिमणोहराई मणोरमाई आलोइत्ता निझाइत्ता भवइ, नो पणीयरसभोई, नो पाणभोयणस्स अइमायाए आहारइत्ता, नो इत्थीणं पुव्वरयाई पुलकीलिआई समरइत्ता भवइ, नो सहाणुवाई नो रूवाणुवाई नो गन्धाणुवाई नो रसाणुवाई नो फासाणुवाई नो सिलोगाणुवाई, नो सायासोरखपडिबद्धे याविभवइ, नवबंभचेरअगुत्तीओपं०२० - इत्थीपसुपंडासंसत्ताणं सिज्जासणाणं सेवणया जाव सायासुक्खपडिबद्धे याविभवइ, लव बंभचेरा पं०२० -सत्थपरिण्णा लोगविजओ सीओसणिज सम्मत्ती आवंत्ति थुत विभोहा( प्र०यण) उवहाणसुयं महपरिण्णा ॥ २ ॥ पासे णं अहा परिसादाणीए नव रयणीओ उद्धंउच्चत्तेणं होत्था, अभीजीनक्खत्ते साइरेगे नव मुहुत्ते चन्देणं सद्धिं जोगंजोएइ, अजियाइया नव नरखत्ता चंदस्स उत्तरेणं जोगंजोएंति, तं०- अभीजि सवणो जाव भरणी, इमीसे णं ग्यणप्पभाए पुढवीए बहुसभरमणिजाओ भूमिभागाओ नव जोयणसए उद्धंआबाहाए उवरिल्ले तारारूवे | ॥श्रीसमवायाङ्ग सूत्रं ॥
| पू. सागरजी म. संशोधित
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113