Book Title: Agam 04 Ang 04 Samvayang Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आहारट्टे समुप्पजइ, संतेगड्या भवसिद्धिया जीवा जे पंचहिं भवगहणेहिं सिन्झिस्संति जाव अंतं करिस्सति ५ ॥छ लेसाओ पं०२०-|| कण्हलेसा नीललेसा काउलेसा तेउलेसा पम्हलेसा सुक्कलेसा, छ जीवनिकाया पं०० पुढवीकाए आऊकाए तेउकाए वाउकाए वणस्सइकाए तसकाए, छविहे बाहिरे तवोकम्मे पं०० - अणसणे अणोयरिया वित्तीसंखेवो रसपरिच्चाओ कायकिलेसो संलीणया, छविहे अभितरे तवोकम्मे पं०२० -पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं सझाओ झाणं उस्सग्गो, छ छाउभत्थिया समुग्धाया पं०० - वेयणासमुग्धाए कसायसमुग्धाए मारणंतिअसमुग्धाए वेब्वियसमुग्धाए तेयसमुग्धाए आहारसमुग्घाए, छव्विहे अत्थुग्गहे पं०२० - सोइंदियअत्थुग्गहे चक्खुइंदियअत्थुग्गहे पाणिंदिअअत्थुग्गहे जिभिदियअत्थुग्गहे फासिंदियअत्थुग्गहे नोइंदियअत्युग्गहे, कत्तियानक्खत्ते छतारे पं०, असिलेसानक्खत्ते छतारे पं०, इमीसे गं रयणप्पभाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं छ पलिओवमाई ठिई पं०, तच्चाए णं पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयाणं छ सागरोवमाई लिई पं०, असुरकुमारणं देवाणं अत्थेगइयाणं छ पलिओवमाई लिई पं०, सोहम्मीसाणेसु कम्येसु अत्थेगइयाणं देवाणं छ पलिओवमाई लिई पं०, सणंकुमारमाहिंदेसु कप्पेसु अत्गइयाणं देवाणं छ सागरोवमाई ठिई पं०, जे देवा सयं सयंभूरमणं घोसं सुधोसं महाघोसं किद्विधोसं वीरं सुवीरं वीरगतं वीरसेणियं वीरावत्तं वीरप्यभं वीरकंतं वीरवण्णं वीरलेस वीरज्झ्यं वीरसिंगं वीरसिटुं वीरकूडं वीरुत्तरवडिंसगं विमाणं देवत्ताए उववण्णा तेसिंणं देवाणं उक्कोसेणं छ सागरोवमाई ठिई पं०, ते णं देवा छण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा ४, तेसिंणं देवाणं छहिं वाससहस्सेहिं आहारटे समुप्पजइ, संतेगइया भवसिद्धिया जीवा जे ॥ श्रीसमवायाङ्ग सूत्रं ॥ | पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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