Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनु. विषय
भुव ३प आहिमें और हिंसा जाहिमें प्रवृत्ति प्ररता है । भे मुनि होता है वह धर्मपथमें सतत प्रवृत, आास्त्रवरहित और रत्नत्रय जल्यासी होता है । वह असंयत लोगों को भनता है; इस लिये वह ज्ञनावरशीयाहि प्रर्भोंडो और उनके द्वारों प्रो अच्छी तरह ज्ञपरिज्ञासे भन र प्रत्याज्यान परिज्ञासे परित्याग डरता है, और वह हिंसा से सर्वथा विरत होता है, संयमी होता है, धृष्टता नहीं डरता है, सलीडे सुजहुः जडे भननेवाला होता है, स्वपरडे प्रत्याशालिताषी होता है, मोक्षमार्ग में ही सतत प्रवृत रहता है, सावधायरएासे रहित होता है, जाह्याभ्यन्तर अलिष्वंग परित्यागी होता है और भुवों में खासति नहीं प्ररता है । इस प्रकारडा मुनि प्रो भी सावधाया नहीं डरता है ।
पाना नं.
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१० प्रश्यम सुत्रडा अवतरा, प्रश्र्यमसुत्र और छाया । ११ वसुभान् मुनि पार्थज्ञानयुक्त आत्मासे संपन्न होडर, राशीय पापर्भो डा अन्वेषी नहीं होता है । भे सभ्यस्त्व है वही भौन है, भे भौन है वही सम्यक्त्व है. स वस्तु को सम । इस सभ्यत्व डा आयरा वह नहीं पर सड़ता है ने शिथिल होता है, पुत्राहिङों से प्रेम में इसा रहता है, शाहि विषयों में सिडी अलि३यि होती है, भे प्रभाही है और भे गृहस्थित है, भे इस सभ्यत्वा जायरा करता है जेसा मुनि, सर्व सावधव्यापार परित्याग३प मुनिलाव हो सभ्य प्रकार से ग्रहमा डर डार्मा और जौहारि जाहि शरीरों ो हूर डरे । जेसा मुनि वीर होता है, जन्तप्रांत आहारको सेवन डरता है । जेसा मुनि ही संसारसागर हो तिरनेवाला, मुफ्त और विरत हा गया है । उशसभाप्ति ।
॥ छति तृतीय उद्देश ॥
શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩
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