Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 03 Sthanakvasi Gujarati
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 15
________________ अनु. विषय 3 भेोर्घ स सोऽमें अपरिग्रही होते हैं, वे संयमीन, अस्थ स्थूल जाहि वस्तुओं में ममत्व डे अलाव से ही अपरिग्रही होते है । मेधावी मुनि तीर्थंडर जाहियों डी वाणी सुनहर और उसीको धर्म समर, तनुसार सायरा डर दे अपरिग्रही हो भता है इस मार्ग में मैंने उर्भपरम्परा हूर : डरने प्रा भैसा सरल उपाय जतलाया है वैसा जन्यभार्ग में नहीं है । इसलिये हंस मार्ग में स्थित मुनि अपनी शक्ति प्रो न छियावे । पाना नं. ४ द्वितीयसुत्र प्रा अवतरा, द्वितीयसुत्र और छाया । तीन प्रकार के लोग होते हैं-डो संयम ग्रहा डरता है और भरापर्यन्त पूएतत्परता के साथ उसे निभाता है; प्रोध संयम ग्रहा प्ररता है और परिषहोपसर्ग से जाधित हो उसे छोड देता है; और प्रोध न संयम लेता है न उसे छोड़ता है । भे संयम लेडर गृहस्थों डे आश्रित होडर रहने लगता है वह भी गृहस्थ - भैसा ही है ॥ ६ तृतीय सुत्र प्रा अवतरा, तृतीय सुत्र और छाया । ७ तीर्थऽरों ने यह सज अपने डेवलज्ञान से प्रत्यक्ष र उहा है। इस तीर्थं प्रवयनमें व्यवस्थित मुनि, तीर्थंकर आज्ञानुसार यसने वाला, पण्डित और स्व४न तथा विषय संजन्धी स्नेहरहित होता है; पूर्व और अपर रात्रि में प्रतिभा स्वाध्याय जाहि सहनुष्ठान में प्रयत्नशील होता है; शील डे स्वरूप प्रो भनडर सडा पालन प्ररता है; शीत जायरा और अनायरा के इलो सुनर वह प्राभरहित और संज्ञारहित हो भता है । लव्यों हो न ज्ञानावशी याहि ३ आन्तरि5 शत्रुओं से ही युद्ध डरना याहिये, जाह्य शत्रुओं से युद्ध डरने से ज्या लाल ? ८ यतृर्थ सुत्रऽा अवतरा, यतृर्थ सुत्र और छाया । ८ परीषह जाहिडे साथ युद्ध डरने योग्य यह औौहारि5 शरीर हुर्सल है । स संसार में डुशल तीर्थऽराहिोंने ज्ञपरिज्ञा और प्रत्याज्यान परिज्ञाडा विवेषु प्रहा है। धर्मसे य्युत अज्ञानी भुव, गर्भाहिभें निवास नित हुः जडा अनुभव डरता है । यह विषय, आर्हत प्रवयन में ही उहा गया है । धर्मसे य्युत શ્રી આચારાંગ સૂત્ર : ૩ 3333 ८६ ८८ ८८ Go ८० ८४ ८

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