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भादिनाथ-चरित्र १८
प्रथम पर्व पर उन्हें दया आगई, इससे उनकी आँखों की पुतलियाँ उस पर झुक गई:-इतना ही नहीं, आँसुओं से उनकी आँखें तक तर होगई। ऐसे द्या-भाव पूर्ण प्रभु के नेत्रों का कल्याण हो। .. खुलासा-भगवान् इतने दयालु थे कि, उन्हें अपने अनिष्ट-कारियों परं भी दया पाती थी। वे अपने कष्टों को भूल कर, सतानेवाले के कष्टों की ही फिक्र करते थे।
अब आप स्वेच्छा-पूर्वक आहार के लिए भ्रमण कीजिये। मैं आपको उपसर्ग नहीं करूंगा। भगवान् ने जवाब दिया-"मैं तो अपनी इच्छा से ही भ्रमण करता हूँ, किसी के कहने या दबाव डालने से नहीं।" जिस समय देव वहाँ से चलने लगा, तब भगवान् की आँखों में यह सोच कर आँसू
आगये कि, इस बेचारे ने जो अनिष्ट कर्म किये हैं, उनके कारण इसे दुःख होगा। प्रभु की इस दृष्टि को लक्ष्य में रख कर ही कलिकाल-सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य ने इस स्तुति-श्लोक की रचना की है।