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नैतिकता की मौलिक समस्याएं और आचारांग : १३५ होना स्वाभाविक है और ये राग-द्वेष ही बन्धन के कारण हैं। साधक के समक्ष भी ऐन्द्रिक विषय उपस्थित होते हैं। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि साधक आँख, नाक और कान आदि को बन्द करके चले या चुपचाप बैठा रहे । उनसे बचने का प्रयोजन इतना ही है कि वह उनमें आसक्त या मूच्छित न हो। केवल इन्द्रियों के साथ शब्दादि विषयों का सम्बन्ध होने मात्र से कर्मबन्ध नहीं होता, जब तक कि उसके साथ रागद्वेषात्मक वृत्ति नहीं जुड़ती है। कर्मबन्ध का मूल राग-द्वेष या आसक्ति है। इस प्रकार आचारांग के अनुसार इन्द्रिय लोलुपता, कामना या आसक्ति को जीतना ही वस्तुत. संयम है। यद्यपि इसका तात्पर्य यह नहीं है कि इन्द्रियों को उनके विषयों से विरत न किया जाय।
प्रश्न यह उठता है कि ये शब्दादि विषय किसी एक दिशा में उत्पन्न होते हैं या सभी दिशाओं में उत्पन्न होते हैं ? सूत्रकार का अभिमत है कि ये सभी दिशाओं में उत्पन्न होते हैं और जीव इन्हें ग्रहण करता है। रागी व्यक्ति इन्हें देख-सुनकर, सूघ-चखकर मूच्छित हो जाता है, तब वे उसके लिए बन्धन बन जाते हैं। सूत्रकार का कथन है कि ऊर्ध्व, अधो, तिर्यग् एवं पूर्वादि सभी दिशाओं में देखने वाला रूपों को देखता है, सुनने वाला शब्दों को सुनता है, किन्तु उन विषयों में आसक्ति रखने वाला ही उन शब्दों में, रूपों में मूच्छित होता है । १०३ बुद्ध भी यही कहते हैं कि साधक के देखने में देखना भर होगा, सुनने में सुनना भर होगा।०४ कुछ ऐसे ही विचार ऋग्वेद में है ।१०५
यहाँ दो बातों का दिग्दर्शन कराया गया है। एक तो विषयों को ग्रहण करना और दूसरे अवलोकित या ग्रहीत विषयों में आसक्त होना। दोनों क्रियाओं में पर्याप्त अन्तर है। जहाँ तक ग्रहण या अवलोकन का प्रश्न है, ये विषय आत्मा के लिए दुःख रूप नहीं बनते हैं। यदि मात्र देखने और जानने से ही बन्धन होता है तब तो फिर कोई भी जीव कर्मबन्धन से अछता नहीं रह सकता। वीतरागी या अर्हन्तों को बात तो दूर रही, किन्तु सिद्धात्मा भी विषयों का अवलोकन करते हैं, क्योंकि उनका अनावरण ज्ञान-दर्शन लोकालोक के सभी पदार्थों को जानता देखता है । ऋग्वेद में भी कहा है कि ज्ञानी सब देखता है, सुनता है। १०६ अतः यदि विषयों के संवेदन मात्र से कर्म से कर्म-बन्धन होता है, तो फिर वहाँ भी कर्म-बन्धन मानना पड़ेगा, किन्तु वहाँ कर्मबन्धन नहीं होता। सिद्धावस्था में तो क्या जीवन्मुक्त या अर्हत् दशा में भो कर्म-बन्धन नहीं
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