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श्रमणाचार : २६७
मृत्यु की सम्भावना हो तो ऐसी स्थिति में भिक्षु को क्या करना चाहिए ? सूत्रकार कहते हैं
जं किं वक्कम जाणे आउखेमस्स अप्पणो । तस्सेव अन्तरद्धाए खिप्पं सिक्खेज्जपंडिए || २४३
उस क्रमिक चल रहे संलेखना काल के बीच यदि कोई रोग, आतंक आदि उपस्थित हो जाए ओर भिक्षु अपनी आयु को क्षेम रूप से (समाधिपूर्वक) बिताने का कोई उपाय जानता हो तो वह उस उपाय को संलेखना काल के मध्य में ग्रहण कर ले और यदि उसके शान्त होने की कोई सम्भावना न हो तो उस चल रहे संलेखना क्रम के बीच ही वह पंडित भिक्षु शीघ्र हो ( भक्त - प्रत्याख्यान आदि ) किसी एक अनशन को स्वीकार कर ले |
समाधिमरण के प्रकार :
गोम्मटसार में देह त्याग के च्युत (आयु पूर्ण होने पर मृत्यु हो जाना) च्यावित (विष - भक्षणादि के द्वारा होने वाला मरण) और व्यक्त (समाधि पूर्वक होने वाला मरण) इन तीन भेदों का उल्लेख मिलता है । आचारांग में समाधिमरण पूर्वक होने वाले तीन अनशनों का विशद विवेचन किया गया है । वे तीन प्रकार हैं- भक्तप्रत्याख्यान या भक्तपरिज्ञा, अनशन, इत्वरिक अनशन और पादोपगमन अनशन | इस प्रकार आचारांग में क्रम प्राप्त और आकस्मिक संलेखना (समाधिमरण) के भेद से अनशन तीन प्रकार के बताए गए हैं ।
अतः प्रसंगानुसार संक्षेप में हमें यहाँ यह भी जान लेना नितान्त आवश्यक होगा कि आकस्मिक और क्रम प्राप्त अनशन किसे कहते हैं । आकस्मिक अनशन :
जो अकस्मात् उपसर्ग उपस्थित होने पर, शरीर - बल या जंघा–बल क्षीण होने पर या दुःसाध्य मृत्युदायक रोगादि कारण उत्पन्न होने पर, तथा स्वयं में उठने-बैठने आदि की बिल्कुल शक्ति न रह जाने पर किया जाता है, वह आकस्मिक अनशन है । आचारांग के अष्टम अध्ययन के पांचवें, छठें और सातवें उद्देशक में आकस्मिक अनशनों का वर्णन है । आकस्मिक अनशन को अपराक्रम और अविचार भी कहा जाता है । २४४ आनुपूर्वी ( क्रमप्राप्त ) अनशन :
क्रमशः काय और कषाय की कृशतापूर्वक किया जाने वाला अनशन क्रम प्राप्त या आनुपूर्वी कहा जाता है अर्थात् आनुपूर्वी ( क्रम प्राप्त )
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