Book Title: Acharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Author(s): Priyadarshanshreeji
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 301
________________ २८८ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन आचारांग अहिंसा के सिद्धान्त को केन्द्र बिन्दु बनाकर निवृत्ति प्रधान श्रमण धर्म की विवेचना करता है। यद्यपि इस रूप में आचारांग को मुख्यतः निषेधात्मक नैतिकता का प्रतिपादक माना जा सकता है, तथापि उसमें विधेयात्मक नैतिकता के स्वर भी यत्र-तत्र सुनाई देते हैं। उसका अहिंसा का सिद्धान्त लोकपीड़ा के निवारण के लिए है और इस रूप में उसका हृदय रिक्त नहीं है, जैसा कि श्रीमती स्टीवेंसन ने प्रतिपादित किया है। वह आत्म-कल्याण के साथ ही साथ लोक-कल्याण को भावना से भी अनुप्राणित है। उसकी अहिंसा की भावना के मूल में लोक करुणा और लोक मंगल के स्वर भी मुखर हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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