________________
श्रमणाचार : २२९
वस्त्र ग्रहण करने की क्षेत्र मर्यादा :
साधु-साध्वी को वस्त्र की याचना करने या प्राप्त करने के लिये आधे योजन से आगे नहीं जाना चाहिए।०१ पात्र लाने की भी यही मर्यादा है। १०२ अग्राह्य वस्त्र:
साधु-साध्वी के लिए महाधन प्राप्त होने वाले विविध प्रकार के बहुमूल्य वस्त्र ग्रहण करना निषिद्ध है जैसे मूषकादि चर्म से निष्पन्न वस्त्र अत्यन्त सूक्ष्म ( महीन) वर्ण एवं सौन्दर्य से युक्त, बकरी या बकरे के सूक्ष्म रोमों से बने वस्त्र, इन्द्र नीलवर्ण की कपास से निर्मित, गौड़ देश की कपास से निष्पन्न, रेशम, मलमलसूत्र और वल्कल तन्तुओं से निर्मित वस्त्र । इसी तरह चीन देश, आमिलदेश, गजफलदेश, फलियदेश, कोयब देश आदि देश-विदेशों में बने हए विशेष वस्त्र तथा विशिष्ट प्रकार के कम्बल साधु के लिए अग्राह्य हैं। चर्म एवं रोमों से निर्मित वस्त्र भी ग्राह्य नहीं हैं-जैसे सिन्धु देश के मत्स्य के चर्म एवं रोम से बने हुए, सूक्ष्म चर्म वाले पशुओं के चर्म एवं रोमों से बने हुए कृष्ण, नील एवं श्वेत मृग के चर्म एवं रोमों से निर्मित वस्त्र पतले, सुनहले एवं चमकीले बहुमूल्य वस्त्र, व्याघ्र एवं वृक के चर्म से बने हुए, सामान्य एवं विशेष प्रकार के आभरणों से अलंकृत वस्त्र भी श्रमण को स्वीकार नहीं करना चाहिए।१०3 आठवें अध्ययन में भी स्वल्प एवं साधारण वस्त्र रखने का विधान है। १०४ __मनुस्मृति ०५ तथा विनयपिटक' में भी संन्यासी एवं बौद्ध श्रमणों के वस्त्र के सम्बन्ध में उल्लेख मिलता है । वस्त्र की सदोषता __जीव-हिंसा से तैयार किया गया वस्त्र, एक या अनेक साधओं के उद्देश्य से बनाया गया वस्त्र, साधु के निमित्त खरीदा गया, धोया गया, रंगा गया, अच्छी तरह घिसकर साफ किया गया, श्रृंगार किया गया, धूपादि से सुवासित किया गया वस्त्र मुनि के लिये सदोष है। यदि गृहस्थ ने उसे अपने उपयोग में ले लिया है या वह पूरुषान्तरकृत हो गया है तो फिर मुनि उसे ग्रहण कर सकता है। इसी तरह वस्त्र शाक्यादि भिक्षु, ब्राह्मण आदि के लिए तैयार किया गया हो, परन्तु वह पुरुषान्तरकृत नहीं हुआ हो तो साधु को ऐसा वस्त्र ग्रहण नहीं करना चाहिए । मकड़ी, जाले या अन्य जीव जन्तुओं से युक्त वस्त्र भी ग्रहण न करे। पश्चात् कर्म के दोष से दूषित वस्त्र भी ग्रहण नहीं करना चाहिए । गृहस्थ द्वारा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org