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श्रमणाचार : २४५
प्रथम चार-क्षमा, मार्दव, आर्जव और शौच-क्रोधादि चार कषायों के उपशामक विधानात्मक गुण है। हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्मचर्य और परिग्रह के उपशामक क्रमशः संयम, सत्य, त्याग, ब्रह्मचर्य और अकिचन धर्म है और तप मुनि को तेजस्वी और आगे बढ़ाने वाला है। यहाँ यह उल्लेख कर देना आवश्यक है कि आचारांग में इनसे सम्बन्धित चर्चा बिखरे रूप में मिलती है। इनके सम्बन्ध में कहीं एक साथ विवेचन नहीं मिलता है। फिर भी एक स्थान पर इनकी महत्ता अवश्य प्रस्थापित की गयी है । यथाविऊ नए धम्मपयं अणुत्तरं विणीय तहस्स मुणिस्स झायओ। समाहियस्सऽग्गिसिहा व तेयसा, तवो य पण्णा य जसो यवड्ढइ ॥
क्षमा मार्दवादि दस प्रकार के श्रेष्ठ धर्म में प्रवृत्ति करने वाले, विनयवान् सम्पन्न मुनि की, जो तृष्णा से रहित होकर समाधि एवं धर्म ध्यान में संलग्न हैं, तपश्चर्या, प्रज्ञा और यश अग्नि-शिखा की भाँति उत्तरोत्तर बढ़ता रखता है । १२ __ दस धर्मों का वर्णन मनुस्मृति में भी मिलता है। क्रम में थोडा अन्तर अवश्य है पर आशय समान है। ईसा के पर्वतोपदेश में भी दस शिक्षाएँ वर्णित हैं । वास्तव में दस धर्म कर्म प्रधान अथवा आचार संहिता रूप न होकर आत्म-चिन्तन और आत्म-शुद्धिपरक हैं। अवग्रह याचना की विधि : ___ आहार, वस्त्र, पात्र, शय्या ( पीठ, फलक, उपाश्रयादि ), संस्तारक आदि विशेष धर्मोपकरण संयम-साधना में सहायक होने से इनके ग्रहण करने का विधान है। लेकिन श्रमण-श्रमणी उक्त उपकरणों को गृहस्थ या स्वामी की अनुमति के बिना स्वीकार नहीं करता है, इतना ही नहीं, तृण जैसी तुच्छ वस्तु भी उनकी आज्ञा से ही ग्रहण करते हैं। क्योंकि वे मन-वचन और काया से दत्तादान (चोर ) के सर्वथा त्यागी होते हैं। अवग्रह याचना (आज्ञा मांगने) सम्बन्धी सात अभिग्रह और उनके भेद वर्णित हैं तथा आज्ञा-प्राप्त मकान में अवस्थित श्रमण-श्रमणी के पास यदि अन्य सम्भोग ( समान समाचार ) या असाम्भोगिक (अनन्य चारित्रिक) साधर्मी श्रमण-श्रमणी आये तो उनके साथ कैसा बर्ताव करे ? कैसे मकान की याचना करे ? आदि पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है।
संयम निष्ठ साधु अदत्त (बिना दिए) पदार्थ को ग्रहण नहीं करता। इतना ही नहीं, अपितु वह मुनि जिनके निकट दीक्षित हुआ है या जिनके
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