Book Title: Acharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Author(s): Priyadarshanshreeji
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 261
________________ २४८ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन इन्द्रिय-निग्रह : श्रमण-श्रमणी के लिए प्रिय-अप्रिय शब्द सुनना निषिद्ध है। मुनि के स्वाध्याय भूमि में स्वाध्याय करते समय, आहारादि के लिए बाहर जाते समय, स्थण्डिल भूमि में मलमूत्रादि का व्युत्सर्जन करते समय अथवा विहारादि करते समय मनोज्ञ-अमनोज्ञ शब्द कानों में पड़ते हैं । आचारांग में यह कहा गया है कि मुनि राग-द्वेष या आसक्तिपूर्वक अच्छे-बुरे शब्दों को श्रवण करने का प्रयत्न या संकल्प न करे और न उन्हें सुनने की चाह से इधर-उधर गमनागमन करे । सुनने योग्य शब्द : आचारांग में चार प्रकार के वाद्य यंत्रों का वर्णन मिलता है । (१) वितत, (२) तत, (३) घन और ( ४ ) सुषिर । वितत-मृदंग, नन्दा, झल्लरी आदि से निकलने वाले शब्द । तत-वीणा, विपञ्ची, ढोल आदि के शब्द । घन-हंसताल, कंसताल आदि के शब्द । सुषिर-शंख, वेणु एवं खरमुख आदि वाद्य यंत्रों से प्रस्फुटित शब्द । इन शब्दों को सुनने का प्रयास साधु न करे । १७२ शब्द सुनने के निषिद्ध स्थान : 1 संयमनिष्ठ श्रमण श्रमणी को खेतों में, जंगलों में, सरोवर एवं समुद्र आदि स्थानों में होने वाले शब्द, गाँव, नगर, राजधानी, आश्रम, सन्निवेश, पत्तन आदि स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने का प्रयास नहीं करना चाहिए । इसी भाँति बाग-बगीचे, वन-वनखण्ड देवस्थान, सार्वजनिक सभा, प्रपा ( जलदान) आदि स्थानों में होने वाले शब्दों को सुनने की इच्छा नहीं करना चाहिए। नगर के त्रिपथ, चतुष्पथ, बहुपथ के स्थानों में होने वाले शब्द, भैंसशाला, वृषभशाला, अश्वशाला, हस्तिशाला, तथा कपिंजल के निवास स्थानों, वर-वधू के मिलन के स्थानों में होने वाले मनोज्ञ शब्दों, गीतों को श्रवण करने की इच्छा से जाने-आने का मन में संकल्प नहीं करना चाहिए । जहाँ बहुत लोग एकत्र होकर वीणा, ताल, ढोल आदि बजाते एवं नृत्य करते हों, उन स्थानों, तथा जिन स्थानों में स्त्री-पुरुष बाल-युवा, और वृद्ध रतिक्रीड़ा करते हों, हँसते हों, नाचते हों, खेलते हों, खातेबाँटते और गिराते हों वहाँ होने वाले शब्दों को सुनने की चाह से जाने का संकल्प न करे । वस्त्राभूषणों से छोटी बालिका को सजाकर घोड़े पर बिठाकर ले जाया जा रहा हो, किसी अपराधी व्यक्ति को गधे पर बिठा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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