________________
२३६ : आचाराङ्ग का नोतिशास्त्रीय अध्ययन सावध अल्पसावध और महासावध क्रिया-वोष :
किसी गृहस्थ ने ब्राह्मण, अतिथि, कृपण आदि के साथ श्रमण को लक्ष्य में रखकर पूर्वोक्त स्थान बनवाएँ हैं। यदि भिक्षु उसमें ठहरता है तो उसे सावद्य-क्रिया दोष लगता है ।११ ___किसी गृहस्थ ने पृथ्वीकायादि षट्काय की हिंसा (आरम्भ-समारम्भ) करके किसी श्रमण के उद्देश्य से उपाश्रय, मकान, लौह-कर्मशाला आदि स्थानों का निर्माण कराया हो अथवा साधु के निमित्त कोई विशेष क्रियाएं (लिपाई-पोताई, शीतल जल का छिड़काव, दरवाजे बनवाना, अग्नि प्रज्ज्वलित करना आदि ) की गई हों तो ऐसे स्थानों में ठहरने से साधु को महासावद्य क्रिया दोष लगता है ।१३२ अल्पसावध क्रिया :
गृहस्थों ने जहाँ-तहाँ अपने मकान, भवन आदि का निर्माण कराया हो तथा उसमें शीतकाल में अग्नि आदि प्रज्ज्वलित की हो और साधु के निमित्त उसमें कुछ भी नहीं किया गया हो तो मुनि उसमें ठहर सकता है । गृहस्थों के द्वारा सहर्ष दिए गए ऐसे मकानों या स्थानों में ठहरने वाले मुनि ‘एगपक्खं ते कम्म सेवंति' एक पक्ष कर्म का सवन करते हैं अर्थात् पूर्ण साधुता का पालन करते हैं । यह अल्प सावद्य-क्रिया है । १33 अन्य मत के भिक्षुओं के साथ ठहरने पर गमनागमन विधि :
अन्य भिक्षओं से भरे हुए छोटे या छोटे द्वार वाले उपाश्रय में ठहरा हुआ साधु रात्रि के समय आवश्यक क्रिया हेतु उपाश्रय से बाहर पूर्ण विवेक पूर्वक गमनागमन करे । उपाश्रय से बाहर जाते समय और पुनः भीतर प्रविष्ट होते समय साधु पहले हाथ से भूमि को टटोलकर या देखकर फिर पैर रखे जिससे अन्य किसी के शारीरिक अवयव या उपकरण को उपघात न पहुँचे । यदि उनके दण्ड, छत्र, चामर, भोजन आदि व्यवस्थित रखे हए नहीं हैं और मनि भूमि को हाथ से टटोलकर नहीं चलता है तो वह गिर सकता है । इससे उसके उपकरण टूट सकते हैं अथवा उसके हाथ, पैर आदि में चोट लग सकती है या फिर गिरने से क्षुद्र जीव-जन्तुओं की हिंसा हो सकती है। शय्यातर-त्याग-विधि : ___ मुनि जिससे आज्ञा ले या जिसके मकान में ठहरे, उसका नाम-गोत्र, घर आदि का परिचय प्राप्त करे। उसके बाद उसके घर बुलाने पर अथवा नहीं बुलाने पर भी गोचरी (भिक्षा हेतु) के लिए नहीं जावे अर्थात्
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org