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२३४ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन में नहीं ठहरना चाहिए । २० उत्तराध्ययन में स्त्री आदि से रहित मकान में ठहरने वाले साधु को ही निर्ग्रन्थ कहा गया है ।१२१ ।
(२) गृहपति गृहपत्नी, पुत्रियां, पुत्र-वध, दास-दासियां, नौकरचाकरों में परस्पर मारपीट, उपद्रव, आक्रोश या उनमें होने वाले पारस्परिक कलह को देखकर साध के मन में अच्छे-बरे संकल्प-विकल्प आ सकते हैं अतः साधु को ऐसे उपाश्रय में नहीं ठहरना चाहिये क्योंकि इसे पापबन्ध का कारण कहा है । १२२ __ (३) जहाँ गृहस्थ प्रयोजनवश या निष्प्रयोजन अग्नि जलाते एवं बुझाते हों वहाँ भी मुनि को नहीं ठहरना चाहिये, क्योंकि गृहस्थों को दीपक या अग्नि जलाते एवं बुझाते देखकर मुनि के विचारों में परिवर्तन हो सकता है और उसकी साधना में बाधा पड़ सकती है । २३ __ गृहस्थ से युक्त उपाश्रय या मकान में विभिन्न प्रकार के कुण्डल, हार, कड़े, भुजबन्ध, मणि-मुक्ता, स्वर्ण, चाँदी आदि बहुमूल्य आभूषणों एवं वस्त्राभूषणों से श्रृंगारित युवती स्त्री एवं कुमारी कन्याओं को देखकर भिक्षु के मन में पूर्वजीवन सम्बन्धी अनेक स्मृतियाँ जाग सकती हैं, विभिन्न संकल्प-विकल्प उठ सकते हैं यथा-पूर्वोक्त आभूषण मेरे घर में भी थे अथवा नहीं थे । मेरी कन्या या स्त्री भी ऐसी ही थी अथवा ऐसी नहीं थी आदि से सम्बन्धित बातचीत करने अथवा मन में तत्सम्बन्धी अनुमोदन करने की सम्भावना हो सकती है। इन्ही कारणों से उसे परिवार वाले गृहस्थ के साथ नहीं ठहरना चाहिए । १२४ ।
(५) परिवार युक्त मकान या उपाश्रय में निवसित भिक्षु को देखकर गृहपत्नियाँ, पुत्रियाँ, पुत्रबधुएँ, धायमाताए, दासियाँ, अनुचारिकाए आपस में वार्तालाप करती हैं कि ये मुनि मैथुन धर्म से सर्वथा उपरत हैं अन्यथा इन त्यागी के सम्पर्क (समागम ) से ओजस्वी, तेजस्वी, वर्चस्वी, यशस्वी गुण-युक्त पुत्र की प्राप्ति हो सकती है। इस तरह की बातचीत से ऐसे पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखने वालो कोई स्त्री उन तपस्वी मुनि को किसी भी तरह संयम-साधना या ब्रह्मचर्य से विचलित कर सकती है। इसीलिये उपर्युक्त दोषों को सम्भावना के कारण ऐसे उपाश्रय में ठहरना निषिद्ध है ।१२५ ____ तात्पर्य यह है कि मुनि को अपने महाव्रतों के पालन में सदैव सावधान रहना चाहिए क्योंकि अहिंसा और ब्रह्मचर्य सम्पूर्ण साधना या आचार के महत्त्वपूर्ण आधार-स्तम्भ हैं, अतः मुनि को ऐसे स्थानों में नहीं ठहरना चाहिए जिससे उसके महाव्रतों के स्खलित होने की सम्भावना हो ।
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