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१५४ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्यनन
ही श्रद्धा के ऐसे महत्त्वपूर्ण आलम्बन हैं या आधार हैं, जिनके बिना तत्त्व का या सत्य का साक्षात्कार सम्भव नहीं। जिनोक्त प्रवचन ( तीर्थंकरों की आज्ञा ) को श्रद्धा का आधार बताते हुए आचारांग में कहा है'तमेव सच्चं णीसंकं जं' जिणेहि पवेइयं " " जिनेश्वरों ने जो कुछ कहा है वही सत्य और शंका रहित है । आचारांग टीकाकार ने भी 'सम्यक्त्व' नामक चतुर्थ अध्ययन की टीका में सम्यग्दर्शन का अर्थ 'तत्त्वार्थं श्रद्धानं सम्यक्त्वमुच्यते' कहकर तत्त्वार्थश्रद्धान ही किया है ।
इस प्रकार आचारांग की दृष्टि से, जिनोपदिष्ट तत्त्वज्ञान ( जिन प्रवचन ), सत्य के प्रति दृढ़ निष्ठा या प्रतीति ही सम्यग्दर्शन है । अभिधान राजेन्द्र कोश के अनुसार जीवाजीवादि पदार्थों को जानना, देखना और इन पर दृढ़ श्रद्धा रखना ही 'दर्शन' है । २०
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सम्यग्दर्शन क्या है ? जैन दार्शनिकों ने इसका उत्तर विभिन्न दृष्टिकोणों से दिया है । आचार्य हेमचन्द्र २१ ने देव- गुरु और धर्म के प्रति श्रद्धा रखने को सम्यग्दर्शन कहा है । नवतत्त्वदीपिका २२ में कहा है कि तीर्थंकरोपदिष्ट सत्यतत्त्वों या वचनों में श्रद्धा रखना सम्यक्त्व है । बृहदद्रव्यसंग्रह के अनुसार जीवादि तत्त्वों के प्रति श्रद्धा रखना सम्यक्त्व है । आचार्यं वसुनन्दि२४ के अनुसार आप्त, आगम और तत्त्व- इन तीनों पर श्रद्धा रखना सम्यक्त्व है । आचार्य कुन्दकुन्द २५ के विचार से जिन प्ररूपित जीवादि तत्त्वों के प्रति श्रद्धा रखना व्यवहार सम्यक्त्व है किन्तु निश्चय नय से आत्म श्रद्धान हो सम्यक्त्व है । उमास्वाति ने तत्त्वार्थश्रद्धान को सम्यक्त्व कहा है। इस तरह सभी विचारकों ने अपने-अपने ढंग से सम्यग्दर्शन के अर्थ को स्पष्ट करने का प्रयास किया है किन्तु मूलमन्तव्य सभी का एक ही है ।
इस प्रकार आचारांग कहता है कि 'सड्ढी आणाए मेहावी २ ७ अर्थात् बुद्धिमान और श्रद्धावान को आज्ञा परायण होना चाहिए, क्योंकि 'आणाए मामगै धम्मं मेरी आज्ञा में ही धर्म है दूसरी ओर श्रद्धा के दूसरे तत्त्व को स्वीकार करते हुए वह यह भी कहता है कि 'पुरिसा ! सच्चमेव सममि जाणाहि, सच्चस्स आणाए उवट्ठिए मेहावी मारं तरइ सहि धम्ममादाय सेयं समणुपस्सह? " हे पुरुष ! तुम सत्य को सम्यक् प्रकार से जानो अर्थात् सत्य पर पूर्ण प्रतीति रखो, क्योंकि सत्य की आज्ञा में उपस्थित बुद्धिमान पुरुष संसार या मृत्यु से पार हो जाता है । वह दर्शन ज्ञानादि रूप धर्म का आलम्बन लेकर श्रेय का साक्षात्कार कर लेता है । यह भी कहा है कि सत्य में धैर्य (विश्वास) रखकर स्थिर
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