________________
२१८ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन गया हो । क्योंकि ऐसे ऊँचे या विषम स्थान पर रखे हुए आहारादि को चौकी, फलक, पट्टा, सीढ़ी पर चढ़कर उतारते समय गृहस्थ का पैर फिसल जाए, गिर पड़े तो उससे उसके शरीर का कोई भी अवयव टूट सकता है और उसके गिरने से अन्य त्रस या स्थावर जीवों की विराधना सम्भव है । अतः मालाहृत (ऊँचे स्थान से उतार कर दिया जाने वाला) आहार मुनि ग्रहण न करे । मिट्टी या बाँस की कोटी से नीचा, कुबड़ा या तिरछा होकर निकाल कर दिया गया आहार भी अग्राह्य है ।५१
मिट्टी से लीपकर बन्द किए हुए बर्तन में रखा हुआ आहार अग्राह्य है । क्योंकि इससे पृथ्वीकाय की एवं उसके साथ ही अप (जल), तेज (अग्नि), वाय, वनस्पति और सकाय जीवों की हिंसा होती है और अवशिष्ट पदार्थों की सुरक्षा के लिए पुनः उस बर्तन को मिट्टी के लेप से बन्द करने पर पश्चात् कर्म दोष भी लगता है। सचित्त मिट्टो पर रखा हुआ आहार भी अग्राह्य है ।५२ इसी तरह अपकाय पर रखा हुआ आहार भी अकल्प्य है।
अग्नि पर रखे हुए भाजन से निकाल कर देने पर, आग पर रखे हए उबलते हुए दूध आदि को जल के छीटों से ठंडा कर देने पर, अग्नि पर रखे हुए बर्तन को नीचे उतार कर देने पर या उसे टेढ़ा करके देने पर या भिक्षु के निमित्त आग में ईंधन डालकर या इंधन बुझा दिया जाने वाला आहार। ___ अति उष्ण अशनादि आहार को शूर्प से, ताड़ पत्र से, शाखा और मयूरपिच्छ से वस्त्र या वस्त्र खण्ड से, हाथ या मुख से अथवा पंखा आदि से ठण्डा करके देने पर दिया जाने वाला आहार ।५३ ___वनस्पति और द्वीन्द्रियादि त्रसकाय पर रखा हुआ आहार या जिस पर वनस्पति आदि रखो हो वह आहार ।५४
इसी तरह जिस आहार में खाने योग्य अंश कम हों और फेंकने योग्य भाग अधिक हो और गदा कम हा वह आहार भी अग्राह्य है। यदि शीघ्रतावश गृहस्थ ने पात्र में डाल दिया हो तो मुनि उसे भला-बुरा न कहे अपितु एकान्त स्थान में जाकर खाने योग्य भाग खा ले और शेष भाग अचित्त-निर्दोष स्थान पर सावधानीपूर्वक प्रतिष्ठापित
कर दे ।५५
आहार को ग्राह्यता-अग्राह्यता:
शालो, यव, गेहूँ आदि धान्य, तुषबहुल धान्य अथवा सचित्त रजयुक्त
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org