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पंचमहाबतों का नैतिक दर्शन : १७१ होती है।
पतंजलि के योगसूत्र में भी कहा है कि 'अहिंसाप्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ वैरत्यागः' अर्थात् भीतर में अहिंसा के प्रतिष्ठित हो जाने पर उसके निकट सब प्राणी अपना स्वाभाविक वैर भाव त्याग देते हैं।
कुरानशरीफ की शुरुआत हो 'बिस्मिल्लाह रहीमानुर्रहीम' से हुई है और अल्लाह को करुणा-मूर्ति बताया गया है। इस प्रकार उसमें भी किसी सीमा तक अहिंसा की अवधारणा पाई जाती है ।१९ महात्मा ईसा ने भी कहा है कि 'तू तलवार म्यान में रख ले क्योंकि जो लोग तलवार चलाते हैं, वे सभी तलवार से ही नष्ट किये जायेंगे'। उसमें यह भी कहा है कि तुम अपने दुश्मन से भी प्रेम करो, और जो तुम्हें सताते हैं, उनके लिए भी प्रार्थना करो।२० ।
यहूदी धर्म में भी यह कहा गया है कि किसी आदमी के आत्मसम्मान को चोट नहीं पहुँचानी चाहिए। लोगों के सामने किसी आदमी को अपमानित करना उतना ही बड़ा पाप है, जितना कि उसका खून कर देना।' प्राणि-मात्र के प्रति निर्वैर भाव की प्रेरणा देते हुए कहा है कि अपने मन में किसी के प्रति वैर भाव मत रखो ।२२ इसी तरह लाओत्से भी कहते हैं कि 'जो लोग मेरे प्रति अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं, उनके प्रति भी मैं अच्छा व्यवहार करता हूँ' ।२3 कन्फ्यूशियस ने भी कहा है कि 'जो चीज तुम्हें नापसन्द है, वह दूसरे के लिए हरगिज मत करो' ।२५
उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि जिस अहिंसा को महावीर ने पुष्पित, पल्लवित एवं विकसित किया उसका विश्व के समस्त धर्म एवं दर्शनों में स्थान है । सभी धर्मों द्वारा स्वीकृत अहिंसा एक ऐसी कड़ी है, जो विश्व के समस्त धर्मों को पारस्परिक एकता एवं सद्भाव के सूत्र में आबद्ध कर देतो है।
अहिंसा की अवधारणा को सम्यक् प्रकार से समझने के लिए हिंसा को भी समझ लेना नितान्त आवश्यक है ! 'अहिंसा' हिंसा के अभाव में ही फलित हो सकती है। अहिंसा का सामान्य अर्थ है--हिंसा का अभाव । अतः अहिंसा के वास्तविक स्वरूप को समझने के पहले हिंसा का अर्थ, स्वरूप, प्रकार, कारण आदि पहलुओं पर भी समुचित रूप से विचार कर लेना उचित होगा। हिंसा का अर्थ: ___हिंसा' शब्द हननार्थक 'हिंसि' धातु से बना है । सामान्यतया हिंसा
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