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१९८ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन
यह आत्मा अनन्तकाल से कर्मों से आवृत्त है। कर्मों के आवरण से आत्मा को मुक्त कराने के लिये महाव्रतों की साधना की जाती है और जब यह साधना पूर्णता पर पहुँच जाती है, तब आत्मा परमात्मा बन जाता है।
सन्दर्भ-सूची
अध्याय ७ १. योगदर्शन, २/३१. २. आचारांग, १/१/६. ३. वही. १/३/१. ४. वही, १/२/४. ५. वही, १/१/७. ६. वही, १/३/३. ७. वही, १/३/२, १/२/५. ८. वही, १/१/५, १/३/२, १/८१. ९. वही, १/३/३. १०. वही, १/३/४. ११. वही, १।३/२. १२. वही, १/५/५, एवं सूत्रकृतांग, १/११/१०. १३. धम्मपद, १०/१, १०/४. १४. सुत्तनिपात, अनु०-भिक्षुधर्मरत्न, महाबोधि, सारनाथ, वाराणसी, प्रथम
संस्करण, सन् १९५१, ३।३।७।२७. १५. धम्मपद-कोषवग्गो ५. १६. महाभारत, अनु०-११५/२३, ११६/२८-२९, ११६/८-१३, १४५,
२१५/१९ एवं महा० आदि पर्व १/१/१३. १७. महाभारत शांतिपर्व २७८/५-३०. १८. योगसूत्र पतञ्जलि, २/३५. १९. कुरान शरीफ ५/३५, उद्धृत-अहिंसा दर्शन, प्रवचनकार-श्री उपाध्याय
अमर मुनिजी, सन्मति ज्ञानपीठ, लोहामण्डी, आगरा-२, तृतीय संस्करण,
सन् १९७६ पृ० ५. २०. बाइबिल (भत्ती) २/५१/५२, ५/४५/४६. ___तथा लूका ६/२७/३७ उद्धृत, अहिंसा दर्शन, पृ० ६. २१. मेतलिया-५८ उद्धृत, अहिसा दर्शन, पृ० ६. २२. तोरा-लेव्य व्यवस्था १९/१७, उद्धृत, अहिंसा दर्शन, पृ० ७. २३. ताओतेहकिंग उद्धृत-अहिंसा दर्शन में पृ० ६. २४. उद्धृत-अहिंसा दर्शन, पृ० ७. २५. आचारांग, १/२।१. २६. वही, १/१/२-७. २७. वही, १/१।२-७, १।२/२ एवं १/८/१, १/३/३. २८. वही, ११३/१. २९. वही, १/३/४. ३०. भगवतीसूत्र, १/१/४८.
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