Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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अध्ययन १ उद्देशक १ .........................................................
असंज्ञी पंचेन्द्रिय में नौ प्राण होते हैं - पूर्वोक्त आठ और श्रोत्रेन्द्रिय बल प्राण। . संज्ञी पंचेन्द्रिय में दस प्राण होते हैं - पूर्वोक्त नौ और मन बल प्राण। प्रश्न - भिक्षु किसे कहते हैं ? उत्तर - भिक्षा से जीवन निर्वाह करने वाले को भिक्षु कहते हैं। प्रश्न - भिक्षा कितने प्रकार की होती हैं ?
उत्तर - हारिभद्रीय अष्टक प्रकरण ५/१ में भिक्षा तीन प्रकार की बतलाई गयी है। यथा -
१. अनाथ, अपङ्ग आदि व्यक्ति अपनी असमर्थता के कारण मांग कर खाता है उसे 'दीनवृत्ति भिक्षा' कहते हैं।
२. परिश्रम करने में समर्थ व्यक्ति आलस्य और अकर्मण्यता के कारण मांग कर खाता है उसे 'पौरुषघ्नी भिक्षा' कहते हैं। . ३. सर्व पापों के त्यागी आत्म ध्यानी साधु पुरुष अहिंसा और संयम की दृष्टि से अन्त, प्रान्त, रूखा, सूखा जैसा भी आहार भिक्षा में सहज प्राप्त हो जाता है उसी में संतोष करते हैं उस भिक्षा को 'सर्वसम्पत्करी भिक्षा' कहते हैं। इससे संयम का पालन होता है और संयम पालन से मुक्ति मिलती है।
से य आहच्च पडिग्गहिए सिया से तं आयाय एगंतमवक्कमिज्जा एगंतमवक्कमित्ता अहे आरामंसि वा, अहे उवस्सयंसि वा, अप्पंडे, अप्पपाणे, अप्पबीए, अप्पहरिए, अप्पोसे, अप्पुदए ,अप्पुत्तिंग पणंग-दग-मट्टिय-मक्कडासंताणए, विगिंचिय विगिंचिय उम्मीसं विसोहिय विसोहिय तओ संजयामेव भुंजिज्ज वा, पीइज्ज वा, जं च णो संचाइज्जा भुत्तए वा पायए वा से तमायाय एगंतमवक्कमिज्जा एगंतमवक्कमित्ता, अहे झामथंडिलंसि वा, अट्ठिरासिंसि वा, किट्टरासिंसि वा, तुसरासिंसि वा, गोमयरासिंसि वा, अण्णयरंसि वा, तहप्पगारंसि थंडिलंसि पडिलेहिय पडिलेहिय पमज्जिय पमज्जिय तओ संजयामेव परिट्ठविज्जा॥१॥
कठिन शब्दार्थ - आहच्च - कदाचित्, पडिग्गहिए - ग्रहण कर ले, तं - उस आहार को, आयाय- लेकर के, एगंतं - एकान्त स्थान में, अवक्कमिजा - जावे, एगंतं - एकान्त
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