Book Title: Acharang Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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आचारांग सूत्र द्वितीय श्रुतस्कंध wrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrror. - ग्रन्थकार दूसरी तरह से भी व्याख्या करते हैं वह इस प्रकार है - जिसको खाने से केवल भूख मिटे, उसको अशन कहते हैं जैसे रोटी आदि।
जिसके पीने से केवल प्यास मिटे, उसे पान कहते हैं जैसे पानी।
जिसके खाने से भूख और प्यास दोनों मिटे, उसे खादिम कहते हैं जैसे दूध, इक्षु रस, बादाम, पिस्ता फल आदि।
जिसको खाने से मात्र मुख स्वादिष्ट बने, उसे स्वादिम कहते हैं जैसे - लोंग, सुपारी, इलायची आदि।
कुछ लोग ऐसी व्याख्या करते हैं कि जिससे मुख साफ हो उसे स्वादिम कहते हैं किन्तु यह व्याख्या ठीक नहीं है क्योंकि मुख तो कभी साफ होता ही नहीं है क्योंकि उसमें हर समय थूक रहता ही है। स्वादिम शब्द का अर्थ भोजन करने के बाद जिन पाचक द्रव्यों को खाया जाता है, वे स्वादिम कहलाते हैं।
प्रश्न - प्राण किसे कहते हैं और वे कितने हैं ? पञ्चेन्द्रियाणि त्रिविधं बलं च। उच्छ्वासनिःश्वासमथान्यदायुः। प्राणाः दशैते भगवद्भिरुक्ताः, तेषां वियोजीकरणं तु हिंसा॥ अर्थ - जिनसे प्राणी जीवित रहे उन्हें प्राण कहते हैं। वे दस हैं -
१. स्पर्शनेन्द्रिय बल प्राण २. रसनेन्द्रिय बल प्राण ३. घाणेन्द्रिय बल प्राण ४. चक्षुरिन्द्रिय बल प्राण ५. श्रोत्रेन्द्रिय बल प्राण ६. काय बल प्राण ७. वचन बल प्राण ८. मन बल प्राण ९. श्वासोच्छ्वास बल प्राण १०. आयुष्य बल प्राण।
इन दस प्राणों में से किसी प्राण का विनाश करना हिंसा है। जैन शास्त्रों में हिंसा के लिये प्रायः प्राणातिपात शब्द का ही प्रयोग होता है। इसका अभिप्राय यही है कि इन दस प्राणों में से किसी भी प्राण का अतिपात (विनाश) करना ही हिंसा है।
___ एकेन्द्रिय जीवों में चार प्राण होते हैं - स्पर्शनेन्द्रिय बल प्राण, काय बल प्राण, श्वासोच्छ्वास बल
द्वीन्द्रिय में छह प्राण होते हैं - चार पूर्वोक्त तथा रसनेन्द्रिय बल प्राण और वचन बल प्राण।
त्रीन्द्रिय में सात प्राण होते हैं - छह पूर्वोक्त और घ्राणेन्द्रिय बल प्राण। चतुरिन्द्रिय में आठ प्राण होते हैं - पूर्वोक्त सात और चक्षुरिन्द्रिय बल प्राण।
आयुष्य
ल पण
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