Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay

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Page 9
________________ अब इन्ट्यिनिर्देशो नाम द्वितीयं कोषस्थानम् ) / / 81) -------- चितुर्वघेषु पञ्चानामाधिपत्यं वयो: किलामा मामामा..-- चतुर्णा पञ्चकारानां संकेवा व्यवदानयोः॥१॥ स्वार्यो पलध्याधिपत्यात सर्वस्य च परिन्द्रियम्। स्त्रीत्व- पुंस्त्वाधिपत्यातु कायात् स्त्रीपुरु पेन्द्रिये // 2 // निकायस्थितिसं केशव्यवदानाधिपत्यत:। जीवितं . वेदना: पञ्च श्रद्धायाश्चेन्दियं मनः॥3॥ आता स्याम्यारस्यमा ताख्य मा नाताबीन्द्रियं तथा| उत्तरोत्तर सम्पाप्ति निर्वाणाद्याधिपत्यतः // 810 चित्तालयस्तविकल्पः स्थितिः संकल्प एव च *वदेताब सम्भारो व्यवदानं च यावता तावन्दियम्॥५॥ प्रवृत्तेशश्रयो त्यत्तिस्थितिप्रत्य्पभोगतः। चतुर्दा तपाऽन्यानि निवृत्ते रिन्द्रियाणि वा // 6 // / सुवेन्द्रियमसाता वा कायिकी वेदना सुखम् | साताध्याने तृतीये तु चैतसी सा सूखेन्द्रियम्।७।। अन्यत्र सा सोमनत्यमसाना चैतमी पुन:) दौर्मनस्य मुपेझा तु मध्योभथ्यविकल्पनात् // 8 // भावना प्रोअप नव वीण्यमलं त्रयम् | L..P.

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