Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay

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Page 68
________________ 9110 रमन्य धर्मज्ञानान्चयं सानं पोशाकारमन्यमा तथा च सांवृतं स्वैः स्वैः सत्याकारैश्चतुष्टयम् // 1 // तथा परमनोज्ञानं निर्मलं समलं पुन:। यस्वलक्षणाकारमेकैक द्रव्यगोचरम् // 11 // शेषे चतुर्दशाकारे शून्यानात्म विवर्जिने। नामल: जोशभ्योऽन्य चाकारोऽन्ये ऽस्ति शास्त्रतः॥१२॥ द्रव्यत: पोदशा काराः प्रताकार स्तया सह। आकारयन्ति सालम्याः सर्वमाकार्यते तु सत्॥१३॥ विधाद्यं कुशलान्यन्यान्यायं सर्वासुभूमिछु। धर्माख्यं षट्स नवमु वन्चया रव्यं तथैव षट् // 14 // ध्यानधन्यमनोत्तानं कामरूपाश्रयं च तत्। कामाश्रयं तु धर्माख्यमन्यत् धातुकाश्रयम् // 15 // स्मृत्युपस्थान मेकं घी निरोधे परचित्तधीः / श्रीगि चत्वारि शेमाणि धर्मधीगोचारो] नव // 16 // नव मार्गा-चयधियो दुःखहेतुधियोई यम्।। चतुर्गा दश नेकस्य योन्या धर्माः पुनर्दश // 4 //

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