Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay
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________________ 디찾 हे द्वितीयवदन्यानि पुनः शुभचिमोपित // 35 // ----- प्दशा कृत्स्नान्यलोभोऽरी थानेऽन्त्ये गोचरः पुनः। कामा हे शुद्धकारूप्ये स्वचन: स्कन्धगोचरे // 36 / / निरोध उक्तो वैराग्ये प्रयोगाप्यं तु शेषितम् त्रिधावानयभामा प्यसंसं शेषं मनुष्यजम् // 30 // हेतुकर्मफलाद्धात्वोरारुप्योत्पादनं यो। ध्यानानां रुपधातौ तु ताभ्यां धर्मनयाऽपि च // 38 // सद्धर्मो विविधः शास्त्रागमाधिगमात्म]। [धाता] रस्तस्य वकारः प्रतिपत्तार एव च // 39 // काश्मीर वैभाषिक नीतिसिद्धः प्रायो मयाऽयं कथितोऽभिधर्मः। यद् दुर्गृहीतं तदिहास्मदागः सद्धर्मनीतौ मुनयः प्रमाणम्॥४०॥ निमीलिते शास्तरि लोक चक्षुषि अयं गते साधिजने च भूयसा .' अदृएतत्वैर्निरवग्रहःकतं कुतार्किकै शासनमेतदाकुलम् // 4 // गते हि शान्तिं परमा स्वयम्भुवि स्वयम्भुवःशाप्सनधृग्वषुच] जगत्यनागुण धातिभिर्मनिरौः स्वैरमिहात्र चर्धते // 6 // .. दृति कणगतप्राणं विदित्वा शासने मुनेः। बलकालं मलानां च न प्रमाद्यं मुमुक्षुभिः // 43 // // समापित्तिनिर्देशो नाम [अष्टमं कोशस्थानम् // उन:)
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