Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay
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________________ निवतानिवृताभ्यां च नातीताभ्यां समन्वितः। असंवरो दुश्चरितं दौत्योः) शील्यं कर्म तत्पथः // 24 // विज्ञप्त्यैवान्चित कुर्वन् मध्यस्थो मृदुचेतन :) त्यक्तानुत्पन्न वितप्तिरविज्ञप्त्यार्थपुलः // 25 // ध्यान जो ध्यानभूम्यैव लभ्यतेऽनाश्रवस्तया। आर्यया प्रातिमोक्षाख्यः परविज्ञापनादिभिः // 26 // यावज्जीवं समादान महोरात्रं च संवृतः।। नासंबरोस्त्यहोरात्रं न किलैवं स रायते // 27 // काल्यं ग्राह्योऽन्यतो नीचे स्थितेनोक्तानुवादिना उपवास: समगाछो निभूप्रेणानिशाअयात् // 20 // शीलाछान्य प्रमादाई वृताङ्गानि यथाक्रमम् / चत्वार्येक तथा वीणि स्मृतिनाशो मदश्च ते॥२९५ अन्यस्याप्युपवासोऽस्ति शरणं त्वगतस्य न / उपासकत्वो पगमात् संवृक्तिस्तु भिवत् // 30 // सर्वे चेत्संवता एक देवा कार्या दय: कपम्। तत्पालनात किल प्रोक्ता महादिवं या मनः // 31 // बुद्धसंघकरान् धर्मान भानुभयां श्च सः। निर्वाण चैति शरणं यो याति शरणत्रयम् // 32 //
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