Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay

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Page 53
________________ 1 5156-66. 'सुखाम्यां सम्प्रयुक्तो हि राशो देप्रो विपर्ययात् / मोहः सवै रस दृष्टिमनो दुःखसुखेन तु // 56 // दौमनस्येन कांक्षान्ये सोमस्येन कामजाs) ... सर्वे: प्य्पेसया ग्रो स्वै: स्वैः यथाम्भ्यर्द्ध (वाशित भूमिकाः दौर्मनस्येन कोकृत्य मीा क्रोधो विहि-सनम् | sh 'उपनाहः प्रदाशश्च मात्सर्यन्तु विपर्ययात् // 5 // माया शाख्यमयो म्रक्षो मिद्ध चोभयथा मदः। मेकना पश्यना कमविद्या विचिकिसिमत / सुस्वाभ्यां सर्वगोपौं चत्वार्यन्यानि पञ्चभिः // 59 // कामे चावरणान्येक त्रिपभाहारकृत्यतः / डोकतापश्चता स्कन्धविधानविचिकित्सनात् // 6 // आलम्पनपरितानात्म नरालम्बन संभयात् / . आलम्बन प्रहाणाच्च प्रतिपक्षोदयात् यः॥६॥ पहाणाधार दूरत्वदूषणाख्यश्चतुर्विधः। पतिपक्षः प्रहातव्यः केश आलम्बनान्मतः // 6 //

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