Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay
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________________ भवेत् / - LY 9, फले फलमिशिष्टस्य लाभो मार्गस्य नास्त्यत:---- नाप्रयुक्तो विशेषाय फलस्पः प्रतिपत्रिकः॥३३॥ नवप्रकारा दोषा हि भूमौ भूमौ तया गुणाः) मृदुमध्याधिमात्राणां पुनर्मुदादि भेदतः // 34 // अमीणभावनाहेयः फलस्थः सप्तकृत् परः। त्रिचतुर्विधमुक्तस्तु दित्रिजन्माकुलं कुलः // 35 // आपञ्चमप्रकारहो द्वितीयप्रतिपन्तकः। क्षीणप्रष्ठपकारस्तु सकृदागाम्यसौ पुनः // 36 // क्षीणसप्ताष्टदोषांश एकजन्मैकवीचिकः। तृतीय प्रतिपत्राच सोऽनागामी नवक्षयात् // 37 // सोऽन्तरोत्पन्नसंस्कारासंस्कारपरिनिर्वृतिः / मई (स्रोताश्च सशाने ध्याने व्यवकी कनिष्ठगः॥३॥ स नोऽर्धप्लुत: सर्वच्युतश्चान्यो भवाग्रगः। आरुभ्यगचतुर्धाऽन्य इह निर्वापकोऽपरः // 39 // पुनस्त्रीन् त्रिविधान् कृत्वा नवरूपोपगा: स्मृताः।। तविशेषः पुन: कर्म कुशेन्द्रिय विशेषतः // 4 //
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