Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay
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________________ 5 / 63-0 वैलक्षण्याद् विपक्षत्वाद् देशविच्छेदकालतः।- भूतशील प्रदेशाध द्वया नामिव दूरता // 63 // सकृत भयो विसंयोगलाभस्त्वेषां पुन: पुन:। प्रतिपादयफलप्राप्तीन्द्रियविवृद्धिषु // 6 // परिता नव कामाद्यप्रकारदय संवाया। एका द्वयोः अयो देते तथा )तिसएवताः॥ अन्या अवरभागीयरूपससिवनया:। 53 तिसः परिता प्रट् प्रान्ति फलं तानस्य शेषिताः / अनागम्यफलं सर्वा ध्यानानां पञ्च वाऽथवा। अरौ सामन्तकस्यका मौलारुप्यत्रयस्य च // 6 // आर्य मार्गस्य सर्वा वे लौकिकस्यान्वयस्य च धर्म तानस्य तिसस्तु षट् तत्पमस्य पश्चा अनास्रववियोगाप्र्भवाणविकलीकृतः। हेतुद्दय समु यातात् परिता धात्वतिक्रमान॥६॥ नकमा पञ्चभिर्यावद् दर्शनस्थः समन्धितः / भावनास्थः पुनः पहिरकया वा दयेन वा॥9॥
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