Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay
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________________ 5 / 17 - 23. सर्वत्रगा अनुशया: सकलामनुशेरते) स्वमिमालम्बनतः स्वनिकायमसर्वगाः॥४॥ नानासबोद्ध (-)विषया अस्वीकाराद्विपक्षतः। येन यः सम्प्रयुक्तस्तु स तस्मिन् सम्घ्रयोगनः॥१८॥ फई) मव्याकृताः सर्व कामे सत्कायदर्शनम्) अन्तग्राहः सहाभ्यां च मोहः शेषास्त्विहाशुभाः॥१९॥ कामेऽकुशल मलामि रागंपतिवमूढयः। त्रीण्यव्याकृतमूलानि तृष्णाऽविद्यामनिश्चसा // 20 // द्वैधो ( )वृत्ते तोऽन्यो चत्वार्यवेति बाह्यकाः। तृष्णामान मोहास्ते ध्यायि त्रित्वादविद्यया // 21 // एकांशतो व्याकरणं विभज्य परिपृच्छ्य च स्थाप्यञ्च मरणोत्पत्तिविशिष्यत्मान्यतादिवत // 22 // रागपतिधमानः स्यादतीत प्रत्युपस्थिते। यत्रोत्पन्नाऽपहीणास्ते तस्मिन् वस्तुनि संयुतः॥१३॥ सर्वका लास्तितोकित्वार यात सविधान फसत्। वस्तिकमा सर्मास्तिका इशचतुर्विधारा
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