Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay
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________________ 509-16 सर्वत्रा अनुमायाः सफलामशेरते। दुष्त्रियाद्विपर्यासचतुष्कं विपरीततः / "मितीरणात् समारोपात् संता-चित्तेतु तशात्॥९|| "सप्तमामा नवविधा स्त्रिभ्यो र भावना प्रया:। वधादिपर्यवस्थानं हेयभावनया तथा॥ 10 // विभवे छा न चार्यस्य संभवन्ति विधादयः / नास्मितादृष्टिपुष्टत्वात् कोकृत्यं नापि चाशुभम् // 19 // ' सर्वत्रमा दुःखहेतु दृग्या दृष्टयस्तथा। विमतिः सह ताभिश्च याऽविद्याऽ बेणिकी च या।१२ नवो ( ;) लम्बना एषां दृष्टिद्वय विवर्जिताः। प्राप्तिवाः सहभुवो येऽप्येभिस्तऽपि सर्वगाः॥१३॥ मिथ्यादृग्विाती ताभ्यां युक्ताऽविद्याप केवला। निरोधमार्गहग्वेया: पटना सवगोचराः // 14 // स्वभूम्यूपरमो मार्ग: अनमिनवभूमिकः। तद्गोचराणां विषयो मार्गोहान्योन्यहेतु // 15 // न रागस्तस्य वयत्वान्न देषोऽनयकारतः। न मानो न परामर्शी शान्तशुद्ध्यग्रभावतः // 16 //
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