Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay

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Page 45
________________ 4 / 124-127. -"स्वर्गायझीलं प्राधान्यात् विसंयोगाय भावना। - चतुर्णा ब्राह्मण्यत्वं कल्पं स्वर्गेषु मोदनात्॥१२४॥ धर्मदानं यथाभूतं सूत्राद्यकिष्ट देशना) पुण्यनिर्वाण निर्वेधभागीयं कुशलं त्रिधा॥१२५॥ योगप्रवर्तितं कर्म ससमुत्थापकं विधा। लिपिम्द्रे सगणनं काव्य संख्या यथाक्रमम् / / 126 // "सावद्या निवृता हीनाः किष्टा धर्माः शुभामलाः / प्रणीता: संस्कृतशुभा: सेव्या मोअस्त्वनुत्तरः॥ 17 // :: कर्मनिर्देशो नाम चतुर्थ कोशस्थानम्

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