Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay

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Page 49
________________ 5 / 25-31 ---सर्वत्रानागतेभिः मानसः साधिके परैः। अजैः सर्वत्र शेप्रैस्तु सर्वेः सर्वत्र संयुतः // 24 // सर्यकालास्तितोक्तित्वाद दयात् सद्विषयात फलात। तदस्तिवादात सर्वास्तिवादा इशाश्चतुर्विधाः॥२५॥ ते भावलक्षणावस्था यथान्यधिकसंतिता। तुनीय: शोभनोऽध्वान: कारित्रेण व्यवस्थिताः॥२६) किं विघ्नकृत् कथं नान्य दवायोगात्तथा मत:। "अजात नष्टता केन गभीरा जात् धर्मत्ता // 27 // प्रहीणे दुःख दृग्येये संयुक्तः शेष सर्वगैः। प्राक् पहीणे प्रकारैः च शेमस्तविप्रथैर्मलैः // 28 // दुःखहेतुदृगभ्यास प्रहया? कामधातुजा। स्वकत्रयकरूपाप्ताउ मलवितानगोचराः॥२९॥ स्वकाधरत्रयो )काठमलानां रुपधातूजाः। आरुप्यजास्त्रिधात्वातत्रयाना श्रवगोचराः॥३०॥ ." निरोधमार्गदृग्येया: सर्वे स्वाधिकगोचा। / अनासवास्त्रिधात्वन्त्यत्रयानावगोचराः // 31 //

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