Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay

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Page 38
________________ सामान्तकास्तुवितप्तिरवितप्ति भयेन्तवा) विपर्ययेण पृष्ठामिनि प्रयोगस्तु त्रिमलजः॥६॥ तदनन्तर सम्भूते रभिध्या ग्रास्त्रिमूलना:। कुशलाः सप्रयोगान्ता अलोभ देव मोहजाः // 69 // वध्यच्यापाद पारुष्यनिष्ठा देषेण लोमतः। परस्त्रीगमनाऽभिध्याऽदत्तादान समापनम् // 10 // मिथ्यादृष्टे स्तु मोहेने शेषाणां विभिरिष्यते। सत्त्व भोगावधिष्ठानं नामरूपं च नाम च॥११॥ समं प्राक् च मृतस्यास्ति न मौलोऽन्याश्रयोदयात्। सेनादेश्ककार्यत्वात् सर्वकर्तवदस्ति सः // 12 // "प्राणानिपातः संचिन्त्य परस्पाभ्रान्ति मारणम्। अदत्तादानमन्य स्वस्वीक्रिया बलचौर्यत: // 3 // [अगम्यागमनाकाम] मिथ्याचारश्चतुर्विधः। अन्यसंतोदिनं J वाक्यमर्थाभिसे मृषा वचः // 14 // चमु[श्रोत्र मनोविज्ञानानुभून विभिश्च यत् / तदृष्टगुतावितातग्मती चोक्तं यथाक्रमम् // 25 // अन्यथा संतिनो वाक्यं "- तित्वार्थसूत्रसक 18)

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